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________________ । रतन परीक्षक! ॥निरदोष होए दस विश्वेजांनो । दो विश्वेतक सोइ पछांनो॥ ॥ दस रुपैए कोडी जांन । चार आंने तक कोडी मांन । ॥ इसके खोटे चार विचारो। हाथी दांत काचमन धारो॥ ॥ विलायतसें ढलकर वन आवे । या अस्थी का खोट वनावे ॥ ॥ समझ परीक्षा कर सुख होई । संग्रह कर सोभा जस सोई॥ ॥ इति फिरोजा विधानं ॥ ॥ अथ भीष्मकमणि विधानम्॥ ॥चौपई। । भीष्मक नाम मणी इक जांनो । पैदा मगध देस में मांनो। १४ अवर हिमाले देस प्रमांन । मलयाचल परयत पर जांन । । कलिंग देससे उतपत जानो। संग संख वतनर्म पछांनो । " ज्या नवीन हीरा मन भावे । त्यो निरदोष चमकदरसावे ॥ । सुवर्ग संग धारे जब कोई। चोर अग्नि भय आदन होई ॥ ॥ वृश्चिक सर्प आदि विष टारे । मूसा विस जल सत्रु निवारे ॥ ॥ विषार जीव पास नहिं आये। विजलीआदभयशोकनसावे ।। ॥ रंग सिवाड़ मेघवत जांनो । कर्कसपीत रंग मन आंनो ॥ ॥ विना चमक मैला जो होई। रंग ढंग विन त्यागी सोई॥ ॥ त्रास दोष छिटक विचारो। मध्यमलीन त्यागसुख पारो॥ ॥ कीमत देस भेद कर होई। दूर देस का उत्तम सोई॥ ॥वाल रोग आदी हर जानो। धारन कर सुख संपत मांनो॥ । जहां पतन उत्तम घर आवे । सभी रतन का मेल बनावे ।। ॥ दोष जरतन धार सुख नाहीं। एसे कहा गूथ मत मांही। ॥ निरदोष देखसंग्रह नर करे । निश्च जसवन सोभा धरे ॥ ___अथ कोहनूर विधानम् । ॥चौपई॥ ॥ कोह नूर लबपुर जो होई । विप्र वर्ण का मानो सोई ।। ॥जाके सम जग और न जांन । अति उनम अति कीमत मांन ।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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