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________________ । रतन परीक्षक। ॥ अभ्रक वत छाया जो होई। अभ्रक नाम दोष कहु सोई॥ ॥ धन आयू हर वहु दुख दाई। कांती हीन रूक्षता पाई ॥ ॥ विन टूटे दृटी दरसावे । त्रास दोप दंती भय लावे ॥ ॥अनेक रंग नीलम के माही। सोचित्रककुल नासक ताही॥ ॥ जो मृद चिन्ह दिखावे जवही। मृद गर्भ दोष मानोतुमतवही ॥ अप जस बहुविध रोगदिखावे। दुर्वलता हीनी कर गावे ।। ॥ जो पत्थर संग टुगडा होई । अस्म गर्भ मृत्यु कर सोई॥ ।। जामें खेत विंद दर सावे । विंदु दोष निनिता ल्यावे॥ । बदल वितान वत ऊपर होई । आछा दित दूधगैक्षत्ता सोई॥ ॥ उच्चाटन कर सक सुग्व हर है। निर दोस्व संग्रह सभ करहै। || मानक क्त गुण दोख पछाने। पर राग क्त कीमत माने॥ ॥ भ्रमर रंग वत पत्थर जान । जाही खान ते उतपत मान॥ ॥ चमक दार सुंदर मन भावे । श्रामर नोम ताहि जगगावे॥ ॥ जो नीलम लाली संग होई। टिटिभ नामकर कहिए सोई॥ ॥प्रसूती कष्ट सीन सोहरहै । उत्तम रक्षा बहु वित्र करहै। ।। घाट तबडा कोमन भावे । एक रुपया रत्तो पावे ॥ ॥ सौ रुपैए रत्ती सोई। रंग ढंग लम्ब कीमत होई ।। ॥ निर दोष होय शरेनर जही। ऋद्ध सिद्ध ओयुचन तवही।। ॥ सवजी संग सुपेदी होई । खंडत्त होए न धारे कोई ॥ ॥प्रथम परीक्षा जावित्र करे । स्वप्न देख निश्चा मान धरे ॥ ॥शनी वार रजनी के माही। पवित्र होए शुभ वनलगाही। ॥ नीलम दूध संग ले धोवे । पूजन कर सुगंध संग होवे ॥ ॥ सीस संग वांधे जब कोई । सयनकरे स्वता लख सोई॥ ॥शुभा शुभ जैसा स्वप्न विचारे । तब नीलम पर निश्चों हारे ।। ॥रंग संग निरदोष लखावे । धारे रत्न अधिक सुख पावे ॥ ॥ लाल छिटक वा काली होई । लास दोष आदि तज सोई ।।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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