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________________ २८ । रतन परीक्षक। ॥ सर्वस्व नास करताहि पछानो। खोटी नीलम ताकी जानो। ॥ नीला रंग तोल कम होई। सबजी माइल चमकत सोई॥ ॥ दूसर खोट कांच का जाने । खोटी नीलम देख पछाने ॥ ॥ इति नीलम विधानम् ॥ ॥दोहरा ॥ ॥ नव रल कहै जह थ मताभिंन भिंन परि मांग ।। ॥ निरदोष दोष फल समझके संग्रह करे सुजान ।। ॥नव रलो के स्वामी ।। ॥चौपाई॥ ॥ मानक सुरज देव विचागे। मोती इंदू भेद सम्हारी ।। ॥ भीम देवको मूंगा जान । पंने को त्रिय ईटा प्रमान । ॥ पुखराज गुरु संजक है सोई। शुक्र देव हीरो हित होई ।। ॥ शनी देव नीलम मन भावे । लसुनी राहू देव सुहावे ।। । गोमेद नाम केतू हित जाने । नव रत्न ईशमतगूथ वखाने । ॥दोहा ।। ॥ भुजा सीन वा कंट में। धारन करे जो कोय॥ ॥ नव ग्रह दोष न होत है। अनि सम्बस पनि सोय॥ चौपाई॥ । गोगज वाजी महिनी चार । नन 'न नारी सुत हरि सार॥ ॥ नौनिधि नाम जाहुपे होई। सिमरौ नाम प्रात उठ सोई॥ ॥ अथ लाल विशनम् ॥ ॥दोहरा ॥ ॥ चौवी रत्नी तोल तक । नाम लालडो जान । ॥ होए अधिक सोलान्द है। एसे भेद पछन । ॥ चौपाई॥ ॥ पश्चम देस विलायत जानो । महर बदकसा उतपत मानों।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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