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________________ २६ । रतन परीक्षक । ॥ ॥ जा नीलम को कंकर ल्यावे । पत्थर सुपेद संग दिखावे ॥ | अभ्रक कोला चमकत सोई । नीला कंकर नीलम होई ॥ | ताहि तोडकर जुदा करावे । नीलम के शुभ घाट वनावे ॥ | घोटावड़ा एसे होई । रहितहि बुहारम कंकर सोई ॥ ॥ वास दोष आदि जब जानो । ताहि तोड फिर दूर पछानो ॥ निर दोष आदि जब जाने। ताहि तोड फिर दूर पछोंने ॥ ॥ निरदोष डीली शुभ नीलम होई । पांन रुपैए तोला सोई । ॥ वीस रूपए तक तौला जान । पंच तोले तक तोल पर्छन ॥ ॥ वीस तोले तक इलो जोहोई । पनास रुपए तोला सोई | डेड सौ तक तौला जातो। कोरा खर नामो सो मानों ॥ ॥ जे कर घाट Frasा लीजे । वारा आने रती दीजे ॥ ॥ सौ रत्ती के अंदर होई । से स्पैए तो तक सोई ॥ ॥ तवीत घाट पर ऐसा कीजै । अट आने रती तापर दीजै ॥ ॥ एक रुपए तक सो होई । घाट तवीत मजूरी सोई । ॥ मणि मला घाट बनावे | आना रती तापरे लावे || ॥ चार आने रती तक सोई । मजूरी ने नीलम शुभ होई ॥ ॥ आगे भेद पांच गुण जानो। यथा नाम गुणताहि पछानो ॥ ॥ नीलम अधिक तौल दरसावे । गुरुत्व नाम अभिलाखा पावे ॥ ॥ रंग ढंग स्तिग्यता पाई। स्वित्व नामप्रीति धनदाई ॥ ॥ सूर्यकिर्ण से किर्ण निकासे । इंद्र धनुष वत सिखा प्रकासे ॥ || वर्णानामसोतीसम जानो । अन्यआदि सुखकारकमानो 6 ॥ फटक सुवर्ण रजत वा सोई। ऐसी चमक दिखावे कोई || ॥ पार्श्वदर्निं सो नाम कहा । पन सुख जसगिरोग तनपावे ॥ ॥ आस पास वस्तू में जब ही। रंग दिखावे रंजक तरही ॥ संतति सुखकारक सोई। जा प्रकार पांचों गुणहोई ॥ ॥ ॥ इ दोष सो आगे जातो । भित्र भित्र सो भेद पछांनी ॥
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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