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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान - - - - उस दिन दरबारमें न आनेका कारण बृहस्पतिने उसकी मति और पूछा तो उन्होंने स्पष्ट रीतिसे कहा भी अधिक भ्रष्ट करनेकेलिये जैनकि, आज जन्मोत्सवके दरबारमें आना धर्मका उपदेश किया. ऐसी पौराणिक है व दशदिन पीछे दुःखका समाधान कथा यद्यपि प्रामाणिक नहीं मानी ना करानेको आना पड़ेगा। दोनों समयके सक्ती; तो भी इसपरसे जैनधर्मके बदले एकदिन ही आपके यहां विषयमें लोगोंका सामान्यतः मत आनेका मेरा बिचार था. यह किस प्रकारका था वह स्पष्ट नानने भाषण सुनकर राजाको क्रोध आया योग्य है. और उसने भद्रबाहुको कैदमें डाल नैनधर्मके प्राचीनत्त्वके सम्बन्धमें जैनग्रन्थकार दिया. परंतु पीछे १० ही दिनमें . और भी कई प्रमाण सन्मुख भद्रबाहुका कहा हुआ अनुभ- बौद्धधर्म पीछे. जैनधर्म पहिले. करते हैं. परन्तु यदि उन सबका गोचर हुआ और बराहमिहिरका ". सांगोपांग विचार करें तो एक भविष्य अशुद्ध ठहरा. उस समय सम्बन्धमें व्याख्यान पूर्ण न हो सकेगा; इसलिये रानाने भद्रबाहुको कैदसे मुक्तकर जैनियोंके प्रमाणोंका यहांपर किंचित् नामनिर्देश अपने सन्निकट स्थान दिया और किया है. परन्तु इतनेपरसे ही जैनधर्म यह बौबराहमिहिरको निकाल दिया, ऐसी द्धके पश्चात् प्रस्तुत हुआ होगा ऐसा निश्चित दंतकथा है. सारांश 'नैनी कौन नहीं होता. कोलबुकसाहिब सरीखे पंडितोंने भी जैनधर्मका प्राचीनत्व स्वीकार किया है. है, यह वराहमिहिर अच्छीतरह जान इतनाही नहीं, किन्तु उलटा बौद्धधर्म जैनधतेथे. व्यासजीने शारीरिक मीमांसा मसे निकला हुआ होना चाहिये, ऐसा विधान के दूसरे अध्यायमें बौद्धमत व जैन किया है. मिष्टर एडवर्ड थॉमस् इस विद्वानका मतका अलग २ खंडन किया है. भी ऐसाही मत है. अभी निर्दिष्ट किये हुए (७) पद्मपुराणमें जैनधर्मके पुरातनत्वको पंडितने Jainism or the early faith of पुष्टीकरण करनेवाली एक कथा ऐसी Asoka नामक ग्रन्थमें इस विषयके जो कितने एक है:-एकबार सुर और असुरोंमें प्रमाण दिये हैं वे सब यदि यहांपर दिये जावें युद्ध चल रहा था. असुरोंकी जीत तो बहुत विस्तार हो जावेगा, अतः उनहोने लगी यह देखकर असुरोंके गुरु में से एक दो नमूने यहांपर देता हूं. उसमें शुक्राचार्यको तपस्या भ्रष्ट करनेके कहा है कि, अशोकके प्रपिता चन्द्रगुप्तके समलिये इन्द्रने उसकेपास एक अप्सरा यमें जब बौद्धधर्म कुछ ऊपर सिर निकालने भेजी. उसे देख शुक्राचार्य मोहित लगा था, तब जैनधर्मके क्षय होनेके चिन्ह हुए. यह अवसर पाकर सुरगुरु | दिखने लगे थे. चन्द्रगुप्त स्वतः जैन था.
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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