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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. २६ इस बातको वंशावलीका दृढ़ आधार है. इसके सिवाय चन्द्रगुप्तको १६ स्वप्न हुए चन्द्रगुप्तके थे व उन स्वप्नोंका अर्थ भद्रबाहुने जो किया उसपरसे यह बात स्पष्ट विदित होती है. बुद्धिविलास नामक ग्रन्थमें इन स्वप्नोंका अर्थ दिया है. उसमें कहा है कि, स्वप्र. (१) यह राजा सर्वज्ञान नष्ट होगा. (२) ( जैनधर्मका क्षय प्रारंभ होगा और इसराजका वंशही भ्रष्ट हो जावेगा . ( ३ ) जैनियों में नाना पंथ निकलेंगे. ( ४ ) आर्य खंडसे जैनज्ञान लुप्तप्राय होवेगा. इ० इ० इसमें चन्द्रगुप्तका जैनधर्म व अशोकका बौद्धधर्ममें जाना ये दोनों बातें ध्वनित की हैं. चन्द्रगुप्तराजा श्रमण अर्थात् जैन गुरुसे उपदेश | लेता था ऐसी मेगस्थनीस (ग्रीक इतिहासकार) की साक्षी है, अनुलफजल नामक फारसी प्रन्थकारने ' अशोकने काश्मीरमें जैनधर्मका प्रचार किया' ऐसा कहा है. और राजतरङ्गिणी नामक काश्मीर संस्कृत इतिहासका भी इस विधानको आधार है, उक्त बातें मि० एडवर्ड थॉमस् साहिबने अपने ग्रन्थमें दी हैं. परन्तु ये कहांतक ठीक हैं सो नहीं जान पड़ता. निदान राजतरंगिणीका अन्तिम आधार जो साहिबबहादुरने दिया है, उसपरसे भी उनका अभिप्राय सिद्ध नहीं होता यह मैं कह सक्ता हूं. राजतरङ्गिणीमें अशोकने 'जिनशासनका प्रचार किया' ऐसा कहा है. इस वाक्यके उक्त जिन शब्दपर साहिब बहादुरकी सारी दार मदार दीखती है. परन्तु जिस जगह यह उल्लेख है, उसके पीछेके दशवीस श्लोक पढ़ो तो, वहां चैत्य, विहार आदि केवल बौद्धधर्म सूचक शब्द मिलते हैं. जिनसे कल्हणका उद्देश 'जिनशासन' शब्द से 'बौद्धधर्म' सूचित करनेका था ऐसा जान पड़ता है. बुद्धको भी 'जिन' ऐसी संज्ञा अमर सिंहसरीखे जैनकोशकारकी दी हुई है. इसके अतिरिक्त राजतरंगिणीलिखित अशोक और प्रसिद्ध बौद्धधर्मी चक्रवर्ती राजा अशोक एकही था. ऐसा कहने को भी आधार नहीं है. मत. कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेजके मुख्य संस्कृताध्यापक और पाली प्रोफेसर विद्याभूषण का भाषाके पंडित प्रो० सतीशचन्द्र विद्याभूषणका मत इस प्रश्नके सम्बन्धमें पूछा गया था. वे अपने ता० २४ नोवेंबर १९०३ के पत्रमें लिखते हैं कि, अशोक बौद्धधर्म स्वीकार करनेके पूर्व जैनधर्मी था; ऐसा स्पष्टतासे यद्यपि कहीं कहा नही हैं तो भी महावंशनामक बौद्धग्रन्थमें उसकी माता व स्त्रीका जैनियोंसे सम्बन्ध लगता था ऐसा कहा है. अशोक बौद्धधर्म स्वीकार करनेके पहिले अर्थात् अपने बाप बिन्दुसारकी मौजूदगी में अवंति नगरीका व्हाइसराय व प्रतिनिधि था यह प्रसिद्धही है. अशोककी माता एक श्रेष्टी (सेठ) की पुत्री थी, और अशोककी स्त्री व सीलैौममें बौद्धधर्मका प्रचार करनेको गये हुए महिन्दकी माता अवन्तिके एक श्रेष्ठीकी पुत्री थी. उस समयके श्रेष्टी अथवा व्यापारी बहुधा जैन थे. इसपर से अशोक भी जैनधर्मी होगा ऐसा कहने में हानि नहीं है.
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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