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________________ क्या ये हमारे गुरू हैं ? ४७ काम में सच्चे गुरू नहीं हैं। इस प्रकार की शिक्षा, हमारे छात्रों को, बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी* के समान, देश-भक्तों ही के द्वारा, प्राप्त होगी। इन देशभक्तों के सिवा अन्य किसी का यह अधिकार नहीं है कि वह हमारे छात्रों को देशभक्ति, देशहित, देशी आन्दोलन और देशोन्नति के यथार्थ सिद्धान्तों की शिक्षा दे । इन्हीं देशभक्तों का इस बात का हक है कि वे हमारे छात्रों को इस प्रकार की शिक्षा दें जिससे हमारा देश दुनिया के सभ्य देशों की बराबरी करने का दावा कर सके और जिससे वे स्वयं अपने देश को दुनिया के सभ्य देशों के समकक्ष करने का प्रयत्न कर सकें । यह शिक्षा उन गुरु और अध्यापकों के द्वारा कदापि प्राप्त हो नहीं सकती जो विदेशी राजा के नौकर हैं और जो अपने ज्ञान की बिक्री, केवल अपना पेट भरने ही के लिये, करते हैं। इसीलिये हम कहते हैं, कि ये हमारे यथार्थ गुरू नहीं हैं। यदि ये हमारे सच गुरू होते, तो जिस प्रकार इंग्लैंड में मिस्टर चेम्बरलेन के आन्दोलन में श्राक्सफोर्ड और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी शामिल हुए, उसी प्रकार वे हमारे स्वदेशी आन्दोलन में हमारे विद्यार्थियों को भी शामिल होने देते; अथवा, जिस प्रकार अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रशिया और जापान के विश्वविद्यालयों के गुरू अपने अपने देश के हित के विषयों पर व्याख्यान देते हैं उसी प्रकार वे भी इस देश में, गांव गांव में, स्वदेशी आन्दोलन पर व्याख्यान देते। यदि विदेशी राजसत्ता के कारण सरकारी स्कूल और कालेजों की उपर्युक्त पराधीन दशा हो गई है, तो वह एक तरह से स्वाभाविक ही मानी जायगी; परंतु यह बात हमारी समझ में नहीं आती कि जो प्राइवेट स्कूल और कालज, उच्च प्रकार की शिक्षा देने ही. के लिये, स्वार्थ-त्याग और स्वावलम्बन के तत्वों पर खोले गये थे, वे भी सरकार की गुलामी कबूल करके स्वदेशी आन्दोलन से क्यों पराङ्मुख हो रहे हैं ? इन प्राइवेट स्कूलों और कालेजों के जो अध्यापक और प्रिंसिपाल अपने छात्रों को स्वदेशी *और दादामाई मारोजी, पंडित बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय आदि ।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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