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________________ ४८ स्वदेशी-आन्दोलन और बायकाट । आन्दोलन में शामिल होने की मनाई करते हैं उनको क्या कहना चाहिए? क्या वे हमारे गुरू हैं ? क्या उनको प्राचीन समय के गुरू के तुल्य सन्मान दिया जा सकता है ? कदापि नहीं। जो गुरू अपने शिष्यों या छात्रों को देशहित की शिक्षा नहीं देता और जो गुरू अपने छात्रों को देशहित के कार्यों से पराङ्मुख करता है, वह गुरूपद का अधिकारी हो नहीं सकता--चाहे वह देशी हो वा विदेशी । जो गुरू, अध्यापक या प्रिंसिपाल अपने प्राइवेट स्कूल, या कालेज के छात्रों को स्वदेशी आन्दोलन में शामिल होने नहीं देते वे, हमारे गुरू नहीं, शत्रु हैं। यदि इन प्राइवेट स्कूलों और कालेजों में, सरकारी स्कूल और कालेजों से, कुछ भी अधिक स्वाधीनमा, स्वदेशभक्ति या स्वदेशाभिमान देख नहीं पड़ता, तो वे 'प्राइवेट' किस तरह कहे जा सकते हैं ? वे भी, पूरे 'सरकारी' नहीं, तो 'नीम सरकारी' अवश्य हैं । इस प्रकार के प्राइवेट'-नीम सरकारीकालेजों की, जो सर्व-साधारण लोगों के चन्दे से खोले जाते हैं, क्या आवश्यकता है ? क्या सरकारी स्कूल और कालेजों की कुछ कमी है ? जो 'प्राइवेट स्कूल और कालेज केवल सरकारी स्कूल और कालेजों की नकल करने ही में पुरुषार्थ मानते हैं-अपने उहेश की सफलता समझते हैं-उनको सर्वसाधारण लोगों के द्रव्य की सहायता क्यों दी जाय ? जिस स्वदेशी आन्दोलन की आग सारे हिंदुस्थान में भभक रही है, जिम स्वदेशी आन्दोलन का प्रसार कलकत्ते के एक प्राइवेट कालेज के प्रिंसिपाल स्वयं कर रहे हैं और जिस आन्दोलन में अपने छात्रों को शामिल करना वे अनुचित नहीं समझने, उस आन्दोलन से जिन प्राइवेट स्कूलों और कालेजों के प्रोफेसर और प्रिंसिपाल अपने छात्रों को पराङ्मुख रखने का प्रयत्न करते हैं वे सर्वसाधारण लोगों के द्रव्य से क्यों चलाए जाँय ? कोई कोई कहते हैं कि इससे स्कूल और कालेज की मर्यादा, नियम या 'डिसिप्लिन' का भंग होता है। हम यह जानना चाहते हैं कि 'डिसिप्लिन' का अर्थ क्या है ? यदि कोई विद्यार्थी नित्य स्नान, संध्या और पूजा करे; अथवा अपने जातिभाइयों के घर भोजन करने जाय; अथवा अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करे; अथवा इसी प्रकार के और कोई
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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