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________________ क्या ये हमार गुरू है? विक्रय करता है तब उस ज्ञान की पवित्रता और शुद्धता बिगड़ जाती है । हिमालय पर्वत के शिखर से उत्पन्न होनेवाले गंगाजल की तुलना काशी की मोरियों में बहनेवाले पानी से की नहीं जा सकती। देखिये, इस समय, यह देश विदेशियों ही के अधीन है; और इस देश के निवासियों को शिक्षा देने का काम उन्हीं विदेशियों के हाथ में है। विदेशी राजाओं की स्वभावत: यही इच्छा होती है कि जो देश किसी प्रकार अपने हाथ लग गया है वह चिरकाल अपने अधीन बना रहे और उस देश के निवासी सदा अपने दास-गुलाम-बने रहें । इस इच्छा की सफलता के लिये जिस नीति से इस देश का राजकाज किया जाता है उसीके अनुकूल सरकारी शिक्षा-विभाग के द्वारा लोगों को शिक्षा दी जाती है। अर्थात् इस देश के सरकारी स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी में, सरस्वती देवी को, विदेशी राजसत्ता की दासी का काम करना पड़ता है । यूरप के स्वतंत्र देशों के कालेजों और विश्वविद्यालयों में जिस तरह राजनतिक विषयों की चर्चा होती है और राष्ट्रहित की बातों का निर्णय किया जाता है, उस तरह इस देश के कालेजों और विश्वविद्यालयों में होना असंभव है। हमारे स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय सर्वथा विदेशी सरकार के अधीन हैं; और प्रजा को जिस दशा में रखने का सरकार का निश्चय होगा उसीके अनुसार उक्त स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों में शिक्षा दी जाने का प्रबंध किया जाता है । इसका परिणाम यह हुआ है कि इस देश के स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों को स्वदेशहित और स्वदेशभक्ति के यथार्थ तत्वों की शिक्षा देने के काम में सर्वथा अपात्र होगये हैं। इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी अमेरिका, जापान श्रादि स्वाधीन देशों में जो कालेज और विश्वविद्यालय हैं, उनकी ओर देखने से यही बोध होता है कि इस देश के कालेज और विश्वविद्यालय, इस देश की यथार्थ उन्नति के, पूर्ण विरोधी हैं। जब उक्त स्वतंत्र देशों में किसी सार्वजनिक विषय पर चर्चा होती है-जब कोई जातीय या राष्ट्रीय आन्दोलन होता है तब वहां के विश्वविद्यालयों और कालेजों के गुरू और अध्यापक भी प्रचलित विषयों पर अपनी सम्मति प्रकट करते हैं; और जो पक्ष उन्हें न्याय्य, उचित और
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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