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________________ ४४ स्वदेशी-आन्दोलन और वायकाट । प्रथम इस बात का विचार करना चाहिए कि गुरू कहते किसे हैं। ? यदि भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास देखा जाय तो यह बात विदित होगी कि, उस समय जिन लोगों के द्वारा, समाज को, धर्म, नीति, ज्ञान, विनय, शूरता आदि गुणों की शिक्षा प्राप्त होती थी; और जिन लोगों के द्वारा देश का यथार्थ हित होता था; वे अत्यंत शांत, ज्ञानसम्पन्न, जितेन्द्रिय, निम्पह, सत्यशील और निर्लोभी थे। संसार के रगड़ों-झगड़ों से अलग होकर वे किसी वन में निवास करते थे। वही, उस समय के, सच्चे गुरू थे। इस प्रकार के गुरू के आश्रम में कुछ वर्ष रहकर जो शिष्य, छात्र या विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे उन लोगों के मन में, अपने गुरूजी वा प्राचार्य के संबंध में, म्वाभाविक आदर और पूज्यबुद्धि उत्पन्न होती थी। इस प्रकार के गुरु और प्राचार्यों के आश्रम, वर्तमान समय के स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी से बहुत अच्छे थे; क्योंकि उन आश्रमों में शांति, म्वाधीनता, समबुद्धि और निर्लोभता से इस विषय की चर्चा की जाती थी कि धर्म क्या है, अधर्म क्या है; स्वधर्म-पालन से समाज और देश का हिन कैसे होता है; नीति किसे कहते हैं, अनीति किम कहते हैं; राजा का धर्म क्या है, प्रजा का धर्म क्या है। यदि राजा अपनी सत्ता का दुरुपयोग करने लगे तो प्रजा को क्या करना चाहिए; यदि प्रजा दुराचारी और कर्तव्य-पराङ्मुख होने लगे तो राजा को क्या करना चाहिए; इत्यादि । इस प्रकार के श्राश्रमों में शिक्षा प्राप्त करके जो छात्र समाज में आते थे वे अत्यंत तेजस्वी, स्वाधीन-चित्तवाले और अपने कर्तव्य को पहचानने वाले रहते थे। बड़े बड़े राजा और महाराजा भी, कभी कभी, बिकट समय में, अपने गुरू या प्राचार्य के आश्रम में जाते और उनकी सलाह लेते थे। इसीलिये हमारे धर्मशास्त्र में गुरू को पिता से भी अधिक सन्मान देने की आज्ञा दी गई है । जो गुरू ज्ञानसम्पन्न, निस्पृह, परोपकारी और निर्मल अंत:करण के हैं उन्हींको यह सन्मान दिया जा सकता है । इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र वन्तु और कोई नहीं । गीता में लिखा है कि “ नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।" परंतु जब कोई मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये - केवल अपना पेट भरने के लिये-उक्त ज्ञानामृत का
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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