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________________ स्वदेशी वस्तुका स्वीकार और विदेशीधस्तु का त्याग,ये दोनों बातें एकहींहै। ३१ उन लोगों की मानमर्यादा और शक्ति को बढ़ाने का उद्योग करें; किन्तु, स्वदेशी वस्तु को खरीदकर अपने द्रव्य से अपने ही देशभाइयों के हित की कुछ भी चिंता न करें ! स्वदेशी वस्तु का स्वीकार और विदेशी वस्तु का त्याग-ये दोनों बातें एकही हैं। इस यन में सफलता प्राप्त करना हमारी शक्ति के बाहर नहीं है। प्र. स्तुन आन्दोलन का जो विवेचन कपर किया गया है उसस पाठकों को यह बात हुआ होगा कि स्वदेशी वस्त का स्वीकार और विदेशी वस्तु का त्याग, यही दो बाने, इस आन्दोलन के, मुख्य प्राण हैं--- यही दो बातें, इस आन्दोलन के प्रधान तत्व हैं । यदापि ये बातें, बाहर से देखने में, भिन्न भिन्न देख पड़ती हैं.--यद्यपि ये बातें, भिन्न भिन्न दो विषयों के समान, देख पड़ती हैं, और यद्यपि उनका वर्णन भिन्न भिन्न शब्दों में किया जाता है (और कदाचित इसीसे कोई कोई अपने को ' स्वदेशी ' के अनुयाया और कोई कोई • बहिष्कार ' या 'बायकाट' के अनुयायी कहते हैं) तथापि. यथार्थ में. ये दोनों बातें एकही हैंय भिन्न भिन्न विपय नहीं हैं। स्वदेशी और • बायकाट' में तात्विक भेद कुछ भी नहीं है-ये एकही वस्तु के दो भिन्न भिन्न रूप हैं। यदि कोई एक वस्तु भिन्न भिन्न दो स्थानों से देखी जाय ता, देखनेवाले के स्थान में परिवर्तन होने के कारण, उस एकही वस्तु के भिन्न भिन्न दो रूप देख पड़ेंगे। इसी उदाहरण के अनुसार, वर्तमान आन्दोलन के भी. भिन्न भिन्न दो रूप देख पड़ते हैं। जिस दृष्टि से उसकी ओर देखिये उसीके अनुसार उसका रूप देख पड़ेगा। स्वदेशी' के अनुयायियों को केवल 'स्वदेशी वस्तु के स्वीकार और म्वदेशी वस्तु की उन्नति ' ही का रूप देख पड़ता है और 'बायकाट' के अनुयायियों को केवल 'विदेशी वस्तु के त्याग'ही का रूप दिखाई देता है।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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