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________________ स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट। कारण विदेशी वस्तु की जरूरत हो तो, प्रत्येक हिन्दुस्थानी को यह निश्चय करना चाहिए, कि जिस इंग्लैण्ड देश के लोगों ने हमारे मुँह की रोटी छीन ली है, और जिस इंग्लैन्ड देश के लोग काले आदमियों को पशुतुल्य सममते हैं, उस देश की बनी कोई भी चीज हम न खरीदेंगे। जब विदेशी वस्तु की जरूरत ही होगी तब इग्लैण्ड के सिवा अन्य किसी देश की लेनी चाहिर । क्या दुनिया में अंगरेजों के सिवा और कोई लोग ही नहीं हैं ? क्या दुनिया में इंग्लैण्ड के सिवा और कोई देश ही नहीं है ? यदि है तं. क्या इंग्लैण्ड के सिवा और किसी देश की बनी चीज़ लेना पाप है ? नहीं; यह पाप तो है ही नहीं: किंतु यही, इस ममय, प्रत्येक हिन्दुस्तानी का कर्तव्य है। यह तो एक नित्य के व्यवहार की बात है कि जो हमारा प्यार नहीं करता उसके माथ हम अपना संबंध रखना नहीं चाहते। जिसके मन में हमारे विषय में प्रेम नहीं उमके साथ संबंध रखना निंद्य माना जाता है । महाभारत के युद्ध के ममय भगवान श्रीकृण पांडवों के दूत बनकर कौरवों के पास गये थे । उम समय दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को भोजन के लिये बुलाया। भगवान श्रीकृष्णा ने जो उत्तर दिया वह, इस समय, प्रत्येक हिन्दुस्थानी को ध्यान में रखना चाहिए: संप्रीतिभोज्यान्यन्नानि आपद्भाज्यानि वा पुनः । न च संप्रीयम रानन्न चैवापढ़ता वयम ॥" अर्थात भोजन का स्वीकार दो तरह मे किया जाता है-पहले तो प्रेम से, दूसर आपत्ति समय में। ह राजन तुम हमाग प्यार नहीं करते; और हम भी कुछ आपत्ति में फंसे नहीं हैं । ऐसी अवस्था में भोजन का स्वीकार किस प्रकार किया जाय ? अब हम यह जानना चाहते हैं कि, क्या इस देश के निवासियों पर ऐसी कुछ आपत्ति आई है जिससे उन लोगों को, अपने विषय में प्रेम-रहित विदेशियों ही की बनाई हुई चीजें खरीदने के लिये, मजबूर होना पड़ता है ? आश्चर्य की बात है कि जिन लोगों के मन में हमारे विषय में घृणा और तिरस्कार का भाव भरा हुआ है उन्हीं लोगों के कारखानों की चीजें खरीदकर, हम अपने ही द्रव्य से,
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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