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________________ यह समय कभी न कभी आनेही वाला था। .. २९ न सकता । वंगभंग ने सिर्फ इतनाही काम किया कि उक्त विचार-तरंग को, इसी समय, प्रादुर्भूत होने का-प्रकट होने का अवसर दिया । यह तो केवल कालमाहात्म्य है-समय का हेरफेर है। उसके प्रभाव को कौन रोक सकता है ? जिस विचार ने-जिम कल्पना ने-दुनिया के सत्र देशों में हलचल मचा दी: जिस सिद्धान्त के आधार पर प्रत्येक देश के निवामी “वजन का स्वीकार और परजन का त्याग" कर रहे हैं; क्या उम कल्पना का-उम विचार का-उम सिद्धान्त का प्रभाव हिन्दुस्थानियों पर कुछ भी न होगा ? यह परिस्थिति हिन्दुस्थानियों ने म्वयं उत्पन्न नहीं की है। किंतु वह यूरप एशिया के कुछ देशों में -और उन देशों से हिन्दुस्थान में -श्रापही आप स्वाभाविक रीति से आ पहुंची है। अब उस परिस्थिति में हम लोग बँध से गये हैं-उससे हमारा छुटकारा हो नहीं सकता । अतएव उमसे लाभ उठानाही हमारा प्रधान कर्तव्य है। जब दुनिया के सब लोग उन मिद्धान्त का अवलम्ब करके अपना अपना हिन-माधन कर रहे हैं, तब क्या यही एक देश ए.पा अभागा है जिसके निवामी प्राप्त परिस्थिति - वर्तमान समय-स अपनी कुछ भी भलाई न कर सकेंगे ? क्या हिन्दुस्थान के लोग इतने मूर्ख, अज्ञानी और अभिमान-रहित हैं कि वे उक्त नत्व को मान्य न कर सकेंगे ? क्या हम लोगों को इस बात का विचार न करना चाहिए कि हमारं घर का धन केवल हमारे स्वजनी ही को मिले-विदेशियों के हाथ में न जान पावे ? जितना द्रव्य हम व्यय करते हैं यदि वह सब हमारे म्वजनों को न मिले-यदि उसका कुछ भाग विदेशियों को भी देने का प्रसंग आवे - तो हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपना द्रव्य उन विदेशियों को कभी न दें जो हमारा अपमान करते हैं जो हमारी प्रार्थना पर ध्यान नहीं देते-जो हमारे हकों का कुछ खयाल नहीं करतेजो हमें सदा दासत्व में रखने की चेष्टा करते हैं; किन्तु हम अपना द्रव्य ऐसे विदेशियों को दें जो हमारा अपमान नहीं करते। अर्थात प्रत्येक हिन्दुस्थानी को स्वदेशी वस्तु के व्यवहार-द्वारा, अपना द्रव्य, अपने देशभाइयों है को, देना चाहिए: यदि किसी म्वदेशी वस्तु के अभाव के
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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