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________________ ૨૬ स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट । पीछे इसी प्रकार का भय बना रहेगा । विदेशी वस्तु के विशेषतः इंगलैण्ड की बनी वस्तु के त्याग की प्रतिज्ञा को सुननेही गोरे अखबारों और कुछ गोरे अफसरों ने अपना भयानक रूप प्रकट किया । बंगालियों को 'कार-योग' से भ्रष्ट करने के लिये सरकार ने सरक्यूलरों कीड़ी लगा दी और अपने लठदार शासन के बल पर प्रजा की उचित प्रतिज्ञा के भंग करने का प्रयत्न आरंभ किया । परंतु जिस प्रकार सच्चा 'योगी' वही है जो किसी भूत, पिशाच और गन्नम के उपस्थित किये हुए विघ्नों की परवा न करता हुआ, धैर्य और दृढ़ निश्चय से अपना अभ्यास करता चला जाता है और अंत में सफल- मनोरथ होता है; उसी प्रकार समा 'देशभक्त' वही कहलावेगा जो अपने 'बहिष्कार- योग के अभ्यास में, fair in ear या किसी गोरे अफसर की परवा न करता हुआ अपनी प्रतिज्ञा का पालन करेगा । जब हमारे विदेशी वस्तु के त्याग से अंगरेज व्यापारियों का कुछ नुक़सान होने लगेगा तब अंगरेज सरकार की आंखें अवश्य खुलेंगी क्योंकि अंगरेजी-राज्य और अंगरेजी व्यापार का बहुत घना संबंध है— इन दोनों की आत्मा एक ही है । उस समय, हमारी सरकार, अपने जातिभाइयों के व्यापार की रक्षा के हेतु, हमारी प्रार्थनाओं पर अवश्य ध्यान देगी। हम लोगों की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी । अतएव बहिष्कार-यांग की सिद्धि का मुख्य साधन यही है कि, किसी प्रकार के विनों में भयभीत न होकर दृढ़ता से अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना चाहिए । यह समय कभी न कभी आनेही वाला था । म प्रस्तुत विषय का जितना अधिक विचार करते हैं, उतनाही "अधिक हमारा विश्वास दृढ़ होता जाता है, कि वर्तमान स्वदेशी आन्दोलन का जोश, किसी क्षुद्र जलाशय में उत्पन्न होनेवाली क्षणिक लहर के समान, चञ्चल और अनस्थिर नहीं है; किन्तु वह इस देश की उन्नति का एकमात्र चिरस्थायी साधन है। गोरे अखबारों का यह
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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