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________________ वाकाट अथवा बहिष्कार और स्वदेशी वस्तु व्यवहार की प्रतिज्ञा । २५ कोई कोई कहते हैं कि स्वदेशी वस्तु व्यवहार के आन्दोलन में किमी प्रकार का राजनैतिक Political, स्वरूप नहीं आने देना चाहिए- उसका केवल औद्योगिक विषयों ही मे संबंध रहे- 'स्वदेशी' और 'बायकाट' ये दो भिन्न भिन्न विषय हैं । परंतु यह निरी भूल है । यह आंदोलन माक्षात् राजनैतिक न हो तो न सही; परंतु इसमें संदेह नहीं कि हमारे नायकों की यही इच्छा है कि इस आंदोलन का हमारे राज्यकर्ताओं की वर्तमान राजनीति पर कुछ असर पड़े इस आंदोलन से हमारे राजमदांध सरकारी अधिकारियों की थोडी भी खुल जाँय और वे हमारी उचित प्रार्थनाओं पर कुछ ध्यान देने लगे । इस प्रकार यह आंदोलन अप्रत्यक्ष रीति से राजकीय कहा जा सकता है - इस बात को प्रकट कर देने से हमारी कुछ हानि नहीं; और उसको गुप्त रखने से हमारा कुछ लाभ भी नहीं । हां, यह बात सच है कि बाहर से इस आन्दोलन के दो रूप हैं; परंतु रूप की भिन्नता से वस्तुस्थिति में कुछ भेद नहीं होता । स्वदेशी वस्तु का व्यवहार और विदेशी वस्तु का त्याग- ये दोनों एक ही विषय के भिन्न भिन्न रूप हैं। . १ · इस लेख में बहिष्कार की योग की उपमा दी गई है। अब इस बात का विवेचन किया जाता है कि उक्त ' बहिष्कार-योग का अभ्यास किस प्रकार किया जाय- इष्ट हेतु की सफलता के लिये किन किन साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। योग का स्वरूप और उसके 'अभ्यास का मार्ग' ये दोनों भिन्न भिन्न बातें हैं। कैसाही योग क्यों न हो - चाहे वह 'धार्मिक' यांग हो चाहे 'राजकीय' - उसकी सिद्धि के लिये हृढ़ निश्चय और धैर्य की आवश्यकता है; क्योंकि उसकी सिद्धि में अनके विघ्न उपस्थित होते हैं । जब कोई मनुष्य किसी योग का अभ्यास करने लगता है तब उसको उस योग से भ्रष्ट करने के लिये भूत, पिशाच, राक्षस आदि भयंकर रूप धारण करके भयभीत करने का उद्योग करते हैं । इसी प्रकार 'बहिष्कार - योग' के अभ्यास करनेवालों को भी बहुतेरे भूतों, राक्षसों और पिशाचों ने भयभीत करने का यन किया है । और जबतक हम लोग बहिष्कार योग का अभ्यास करते रहेंगे नवतक हमारे
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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