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________________ बायकाट अथवा बहिष्कार और स्वदेशी वस्तु-व्यवहार की प्रतिक्षा। २३ तब उसके व्यवहार की प्रतिज्ञा करने की आवश्यकता ही क्या है ? सच बात तो यह है, कि जबतक हमारे देश में मब प्रकार की चीजें बनने नहीं लगी हैं तभीतक उनके व्यवहार की प्रतिज्ञा करने की अत्यंत आवश्यकता है; क्योंकि अर्थशास्त्र का यही सिद्धान्त है कि जबतक किसी वस्तु की मांग नहीं बढ़त। तबतक उसकी आमदनी भी नहीं बढ़ती। किसी देश में बहुतसी चीजें तभी तैयार होती हैं जबकि उनक बनानेवालों को, उस देश के राजा या प्रजा की ओर से. उनंजन दिया जाता है। यह बान सब लोगों को विदित है कि हमारे राजा की ओर से स्वदशी व्यापार की उन्नति के लिय उनंजन पान की संभावना बहुत कम है। अब यदि प्रजा की और से कुछ उत्साह न दिया जाय. और यदि मब लोग यही कहन लगें कि जब दशी चीज़ बनंगी नब हम उनका व्यवहार करेंगे, तो इस देश में देशी वस्तु के बनने की आशा कदापि नहीं की जा मकती। हम जानते हैं कि आज दशी वस्तु के व्यवहार की प्रनिज्ञा करने से कलही हमारे देश में देशी वस्तु का बाजार गरम न हो जायगा । हम जानत हैं कि हमारी प्रतिज्ञा का फल, योगाभ्यास के ." अनेकजन्मसंसिद्धम्तन। याति पगं गति इस तत्व के अनुसार, बहुत दिनों के बाद दिखाई देगा। इसीलिये हमारा। यह प्रार्थना है कि हमार मब दश-भाइयों को अभीम देशी वस्तु के व्यवहार की दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिए। उक्त आक्षपा का समाधान एक उदाहरण स भली भांनि हो जायगा। दखिये, कुछ सरकार्ग अफसगे की यह इच्छा देख पड़ती है कि महाराष्ट्रब्राह्मणों का सरकारी नौकरी न दी जाय । परंतु महाराष्ट्र-ब्राह्मणों के सिवा अन्य जाति के बहुतसे बुद्धिमान, शिक्षित और होशियार आदमी नहीं मिलते । अतएव सरकारी नौकरियों के देन में प्रायः इस नियम का पालन किया जाता है, कि जहांतक हो सके प्रथम महाराष्ट्र-ब्राह्मणों को कोई जगह न दी जाय । पहले किसी युरशियन, क्रिश्चियन, मुसलमान, पारसी, कायस्थ या किसी अन्य जाति के मनुष्य को जगह दी जाय; और जब इतने पर भी कोई न मिलै तब महाराष्ट्र-ब्राह्मण को जगह दी जाय । इस उपाय से, यद्यपि एक दो ही दिनों में सरकारी नौकरी में सब महाराष्ट्र-प्राह्मणों का
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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