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________________ २२ स्वदेशी-आन्दोलन और बायकाट । में जो कुछ ऊपर लिखा है वही अंगरेजों के संबंध में भी हमको लिखना पड़ेगा। अर्थान अंगरेजों को हिन्दुस्थानियों की प्रार्थना पर अवश्य ध्यान देना पड़ेगा। कोई कग कि यदि हम म्वदेशी वस्तु के व्यवहार की प्रतिज्ञा करें तो इस प्रनिज्ञा का पालन पूर्ण रीति स नहीं हा मकेगा; क्योंकि इस ममय हमारे देश में मत्र प्रकार का माल तैयार नहीं होना। अतएव, प्रथम हम लोगों को म्वदेशी माल पैदा करने का यत्र करना चाहिए: और जब तक प्रकार का म्वदशा माल बनने लगेगा नव हम म्वदशी वस्तु के व्यवहार की प्रतिज्ञा करेंगे. क्योंकि नभी हमारी प्रतिज्ञा का पूर्ण गति से पालन हो सकेगा । इस दलील में यह बात सच है कि इस समय हमारे देश में मब चीज़ नहीं बनती । जो चीजें वर्तमान समय में यहां बनती हैं उन्हींक व्यवहार की प्रतिज्ञा करने में जो लाभ होगा उमका उल्लेख ऊपर किया गया है; परंतु जो लोग यह कहते हैं कि जबतक सब चीजें अपने देश में बनने न लगें तबनक म्वदेशीवस्तु के व्यवहार की प्रतिज्ञा करने में कुछ लाभ नहीं. उन लोगों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि स्वदेशी वस्तु का व्यवहार जितने अंश में किया जायगा उतनाहो उसमें लाभ होगा, उसम किसी प्रकारका हानि होने का डर नहीं है । भगवद्गीता में, भगवान श्रीकृष्णने अजुन को उपदेश करते हुए यही कहा है कि- “नहाभिक्रम नाशोऽम्ति प्रत्यवायो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥" स्वदेशी वस्तु के व्यवहार को प्रतिज्ञा भी इसी प्रकार की है। इस प्रतिज्ञा का पालन जितना किया जायगा उतनाही उससे हमारे देश का कल्याण होगा। सारांश, म्वदेशी वस्तु के व्यवहार की प्रतिज्ञा का पालन बहुन दिनों तक करते रहने ही से हमारा इष्ट हेतु सिद्ध होगा । जो लोग यह कहते हैं कि, जब सब प्रकार का देशी माल बनने लगेगा तब हम देशी वस्तु के व्यवहार को प्रतिज्ञा करेंग, वे लोग उस आदमी से कम मूर्ख नहीं हैं जो यह कहता है कि जब मुझे तैरना आ जायगा तब मैं पानी में पैर रक्खूगा ! ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि जब मब प्रकार का देशी माल तैयार होने लगेगा
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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