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________________ ૨૮ जैनधर्मपर व्याख्यान. नहीं सो भी यज्ञ न करनेवाले अन्धतमसमें गिरते हैं. अथवा लौकिक दिनोंको ही देखते हैं पारलौकिकोंको नहीं देखते क्योंकि नास्तिकोंके दृष्टप्रधान है और शूद्रतुल्य हैं ताड़नादि व्यापारसेही अभिभूत करता है । ये नास्तिक थे जो परलोकको नहीं मानते थे क्योंकि वे कहते थे कि हमने उसको नहीं देखा है ॥ जैनशास्त्रों में पुराने भारतवर्षकी दशा ठीक २ दर्शाई गई है, उनमें लिखा है कि जब जशों में दिगम्बर ऋषि ऋषभ पृथ्वीपर यह उपदेश कररहे थे कि 'अहिंसा परमो पुराना भारतवर्ष धर्मः अर्थात् किसीजीवको न मारना यहां परम धर्म है, और अपनी निरक्षरी बाणीसे मनुष्य, देव और पशुओंका उपकार कर रहे थे, उससमय ३६३ पाखडी गुरुभी थे जो अपने २ मतोंका उपदेश कर रहे थे, उनमेंसे एक शुक्र वा बृहस्पति था जिसने चार्वाक मत चलाया। निस्संदेह हमको पुराने भारतवर्षकी यही ठीक २ दशा मालूम होती हैं । प्राचीन समयमें तीसरे कालके अन्ततक एकमतका एकही उपदेशक नहीं था बल्कि ३६३ थे इससे भी अधिक थे जो अपने २ सिद्धांतों का उपदेश करते थे, और जैसा उनकी समझमें आता था वैसा इसलोक और इसजन्मको बतलाते थे । पुरानें भारतवर्ष के विषय में जो ऊपर लिखा है उसको प्रोफेसर मैक्समूलर (Max मैक्समूलर muller ) साहब और प्रायः करीबकरीब अन्य सब विद्वान् मानते है । सन् १८२९ ईस्वीमें जब उनकी अवस्था ७६ वर्षकी थी और जब उनके नेत्रोंकी ज्योति और न याद करनेकी शक्ति ही वैसी रही थी जैसी कि २६ वर्षकी अवस्था में थी और जब वह अपनी सहायता के लिये युवापुरूषांसे आशारखतं थे जैसेकी वह खुद अपनी युवा अवस्थामें अपने गुरु और अध्यापकों की हर्षपूर्वक सहायता करते थे यह श्रेष्ट विद्वान मैक्समूलर ( Max mmuller ) साहब लिखते हैं कि साहब की रोच " कई शब्दों अनेक अर्थ होते हैं जैसे कि प्रजापति ब्रह्म वा आत्मा । यह अर्थ या तो उनशब्दोंने ग्रहण कर लिये हैं या उनके लिये ये अर्थ उपयुक्त करते हैं। यदि हम यह समझें कि इन अर्थों में बराबरउन्नति होती रही है तो यह हमारी भूल हैं । जो कुछ हमको ब्राह्मण और उपनिषदोंसे भारतवर्षको विद्या और उसके विद्वानोंके विषयमें हाल मालूम हुआ है उसके मुताविक हम यह मानसके हैं कि इसदेशमें चारों तरफ विद्याके वे अंत केन्द्र ( मरकज़ ) थे. जिनमें किसी न किसी मतके बलवान पक्ष लेनेवाल होते थे" छहीं दर्शनोंके सूत्र जो एक दूसरेसे भिन्न हैं किसी प्रकार इसबात का दावा नहीं कर सकते, कि वे कायदे के मुताविक व्यवहारके पहले उद्यमको प्रगट करते हैं, बल्कि मेक्स मुलर साहयका षट्दर्शन Max ( Muller's six systems of Philosophy )
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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