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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान, वे यह जाहिर करते हैं कि कई पीढ़ियोंमें अलग २ विद्वानानें जो बातें दर्याफ्त की हैं उनका ये अंतिमसंग्रह है"।" राजा हर्ष और बौद्ध यात्रियोंके समयसे लेकर महा भारतके बनाये जान, यूनानी हमला करनेवालोंकी साक्षी बौद्धोंकी त्रिपताका खुलासा वर्णन और अंतम उपनिषद और वेदोंके मंत्रोंके समयतक जहां तक हम भारतवर्षके विचारका पता लगासके हैं. हमको हरस्थान पर एकही चित्र दिखाई देता है. अर्थात् एक समाज जिसमें आत्मसम्बंधी अनुराग प्रबल और तेज मालूम होता है, और जिसमें लौकिक पदार्थके तरफ प्रेमकी बहुत न्यूनता है। एक ऐसा समाज जो विचारशीलोंका भुवन और तत्ववेत्ताओंका राष्ट्र है "। "जिन न्यायसम्बंधी युक्तियांका भारतवर्षके विचारशीलोंने उपदेश दिया था उनके बडे समूहके बीचमें इन षटदर्शनोंने जो एक दूसरेसे अलग २ हैं. अपने स्वत्त्व ( मौज़. दगी ) को कायम रक्खा है" " इस बात से भी कि कई सूत्र दुसरे सूत्रोंका खण्डन करते हैं, और प्रमाण देते हैं यह स्वीकार करना पड़ता है, कि उससमयमें जो उनकी अंतिम अवस्थासे पहले था पृथकर न्यायकी शिक्षाओंके साथही साथ उन्नति होती जाती थी। __" यद्यपि उपनिषद और ब्राह्मणों में एकही प्रकारका वर्णन है तो भी उनमें बडा विस्तार, नियमका अभाव और भांति २ की कल्पनार्य हैं, जिनको अनेक आचार्य और शिक्षा पृष्ट करता है । मंत्रोंमभी हम यह बात देखते हैं कि विचार अलग २ हैं, और एक दुसरेके स्वाधीन है. यहांतक कि कभी २ तो स्पष्ट रूपसे उनसे पूरी '२ अश्रद्धा और नास्तिकता प्रगट होती है । यदि हम यह चाहते हैं कि हमको षट्दर्शनोंकी इतिहास सम्बंधी उत्पत्ति और उन्नतिका ठीक २ हाल मालूम हो तो हमको चाहिये कि इन सब बातोंकी तरफ ध्यान दें " "ऐसी २ रा कि चार्वाक पहले समयमें मौजूद थे, हम कई मंत्रोंमें देखसक्ते हैं जिनमें बहुत वर्ष पहले मैंने शुरूके नास्तिक मतके अद्भुतचिन्ह बतलाये थे । वृहस्पतिके मतपर चलनेवालोंके कई सूत्र ऐसे हैं जिनसे यह बात प्रगट होती है कि उनके साथसाथ और दर्शन भी मौजूद थे । वार्हस्पत्य (बृहस्पतिके मत वा चार्वाकपर चलनेवाले) यह कहते हैं कि गोया वे औरोंसे ऐसेही मुख्तलिफ हैं। जैसे और उनसे पृथक हैं। मंत्र, ब्राह्मण और सूत्रोंमें वैदिक (कौत्स ) मतपर विरोधके चिन्ह दिखाई देते हैं, और उनका अनादर करनेसे हमको पुराने भारत वर्ष के धर्म, न्याय, युद्ध और युद्धस्थानोंका बिल्कुल उलटा ज्ञान हो जावेगा" ॥ महाशयो! यह राय प्रोफेसर मैक्स मूलर (Prof.MaxMuller) साहबने उसवक्त दी थी जब उनकी उम्र ७६ वर्षकी थी। मुझे अफसोस है कि मेरे लिये इसवक्त इतना समय
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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