SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देव ] ३ लो जैन जगत के तीर्थङ्कर मेरा प्रणाम लो । दो वीतरागता का वर, वन्दन निष्काम लो ॥ तुम तीर्थ नही तीर्थकर, क्या गुण गरिमा गाए । भव- सिन्धु-भवर मे भटके, (इन) भक्तो को थाम लो ॥ १ ॥ तुम सकल चराचर द्रष्टा, अविकल विज्ञान हो । तुम ग्रमित शक्ति, दृढ दर्शन, अविचल विश्राम लो ॥२॥ तुम तीन भुवन के नायी, ( पर) उत्तरदायी नहीं । सुस दुस जय निज कर्माश्रित, तुम ज्योतिर्धाम लो || ३ || तुम श्रात्म-विजेता नेता, 'तुलसी' के त्राण हो । तुम सत्य शिव सुन्दर, स्तवना आठू याम लो ॥४॥ तय-प्रभु पाश्वदेव के चरणो मे [x
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy