SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २: हे दयालो देव ! तेरी शरण हम सब आ रहे । शुद्ध मन से एक तेरा, ध्यान हम सब ध्या रहे ।। मोह, मद, ममता के त्यागी, वीतरागी तुम प्रभो ! हम भी उस पथ के पथिक हों, भावना यही भा रहे ।।१।। सद्गुरु में हो हमारी भक्ति सच्चे भाव से। धर्म रग-रग में रमे हरदम यही हम चाह रहे ।।२।। दिल से पापों के प्रति प्रतिपल हमारी हो घृणा । प्रेम हो सत्संग से यह लालसा दिल ला रहे ॥३॥ दूसरों की देख बढ़ती हो न ईर्ष्या लेश भी। सर्वदा ग्राहक गुणों के हों हृदय से गा रहे ॥४॥ त्यागमय जीवन विताएं, शान्तिमय बर्ताव हो। भाव हो समभाव तेरा पंथ, 'तुलसी' पा रहे ॥५॥ - लय-हे प्रभु आनन्ददाता [श्रद्धेय के प्रति
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy