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________________ ६] : ४ : देव ! दो दर्शन तुम्हारा शान्ति जिन मैं शरण ग्राया । बिना प्रभु-दर्शन तड़फती मीन ज्यों यह मेरी काया || शिखर धर वर मन्दिरों के द्वार भी जा खटखटाए । जड़ाकृति प्रतिमा प्रतिष्ठित स्वर्णमय शिर छत्र छाए । सुबह-शाम "हंगाम से होती निहारी ग्रारती मैं । विविध वाद्य, विनोद, गायन गा रहे सुर-भारती में । बाह्य आडम्बरों में भगवन् ! न तुमको देख पाया । देव ! दो दर्शन तुम्हारा शान्ति जिन मै शरण ग्राया ||१|| लय- मातृ मन्दिर मे स्वच्छ सुरभित सलिल से जिनराज ! तुमको जन नहलाते । मिष्ट नव-नव भोज्य भगवन् ! बिन बुभुक्षा जन खिलाते । कलित कोमल कुसुम कलिका भेंट नव नेवज चढ़ाते । सुरभि, धूप, सुरूप सुन्दरता चरच चन्दन बढ़ाते | [ श्रद्धेय के प्रति
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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