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________________ शाखा नही आलोचनात्मक इतिहास' की भ्रान्ति जनवर्म के धारक राजा २३० मी है आस्तिक नास्तिक समीक्षा=पर्चम अध्याय . आस्तिक-नास्तिक शब्द २३३ जनदर्शन नास्तिकदर्शन',२३५ का व्याकरणसम्मत अर्थ है या आस्तिक दर्शन ?' आस्तिक, नास्तिक की २३८ मूल परिभाषा मे परिवर्तन का कारण ईश्वर मीमांसा=१ष्टम अध्याय ईश्वर के सम्बन्ध मे २४७ जैनदर्शन को अनीश्वर २४९ दार्शनिको की मान्यता वादी क्यो कहा जाता है? . ईश्वर को जगत्कर्ता २५२ ससार किसी की रचना २५४ मानना चाहिए? है? रचयिता कौन है ? प्रत्येक कार्य इश्वरेच्छा २५८ ईश्वर को भाग्य का वि- २५९ से होता है,यह सत्य है? धाला मानना चाहिए? ईश्वर को कर्म-फल- २६३ कर्म का फल कौन देता' २७२ प्रदाता मानना चाहिए? . . है? ईश्वर के भजन की क्या २७६ ईश्वर अवतार धारण २७९ आवश्यकता है? करता है? ईश्वर एक है या अनेक? २८३ जैनधर्म और वैदिकधर्म =सप्तम अध्याय जनधर्म और वैदिकधर्म २८४ अंहिंसा २८९
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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