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________________ ७. ज्ञानावरणीय कर्म १७२ दर्शनावरणीय कर्म १७३ वेदनीय कर्म मोहनीय कर्म - आयु कर्म १७४ नाम कर्म १७४ गोत्र कर्म १७७ अन्तराय कर्म १७७ प्रकृतियो का वन्व १७८ कर्मबन्ध का कारण १७८ कर्मफल का स्थान १८२ परिणाम और प्रकृति १८४ का सम्बन्ध सामूहिक बन्ध का १८६ वन्ध और विपाक को १८५ कारण प्रक्रिया आत्मा और कर्म का १९० अमूर्त आत्मा पर मूर्त १९० सम्बन्ध कर्म का प्रभाव कैसे? कर्म स्वय फलप्रदाता है १९३ परमाणुप्रो का वैचित्र्य १९४ कर्मो की विभिन्न १९६ बन्ध अवस्थाए उद्वर्तन और अपवर्तन १९७ सक्रमण १९७ उदय १९८ उदीरणा १९८ उपशमन निधति निकाचित कर्मफल का सविभाग २०० निर्जरा तत्त्व २०२ मोक्ष तत्त्व २०७ मोक्ष शाश्वत है . २०७ जैनधर्म का अनादित्व चतुर्थ अध्याय जैनधर्म के उद्भव, २१० जैनधर्म प्राचीन है या २१० सस्थापक मधो प्रश्न अर्वाचीन ? जैनधर्म बौद्ध मत की २२२ 'हिन्दी साहित्य का २२६ सत्ता १९९
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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