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________________ चिन्तन और मनन से लेखक के परिश्रम को सफल करे, यही मेरी हार्दिक कामना है। इस अत्युत्तम एव अत्युपयोगी ग्रन्थ के लेखक श्री ज्ञान मुनि जो को मैं अनेकश. धन्यवाद देता हूँ। x x x x मैंने जो समझाले०- जैनभूषण, पजाब केसरी श्री विमल मुनि जी म. ___ मनुष्य का मस्तिष्क कुछ ऐसे विशिष्ट तत्त्वो का सम्मिश्रण है, जिनके प्राचार पर वह प्रत्येक समग्या का समाधान मागता है, समस्या का समाधान प्राप्त करना ही वह अपना ध्येय समझता है । जब तक समस्या का समाधान नही होता तब तक उसे सन्तोप नहीं होता। आज हमारे सामने जितने भी शास्त्र, सूत्र, स्मृतियां है, वे सब मनुष्य की इसी समाधान-वृत्ति का सत्सरिणाम है । आज विज्ञान का युग है। आज किसी भी तथ्य को स्वीकार करने से पूर्व मनुष्य उसको विज्ञान की कसौटी पर स्वरा देखना चाहता है। यही कारण है आज ऐसा क्यो है ? यह सब से पहले पूछा जाता है । प्रश्न मानो तूफान का रूप लेकर मनुष्य के सामने आ खडे होते हैं । इनका समाधान प्राप्त किये बिना मानव हृदय शा त एव स्वस्थ नही हो पाता। 'प्रश्नो के उत्तर' मे प्रश्नो का समाधान किया गया है । अनेकविध तथ्यो को लेकर जो प्रश्न सामने आते है, उनको सगृहीत करके फिर उनका इस पुस्तक मे समाधान कर रखा है। मैंने इस पुस्तक का
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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