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________________ त विहंगम दृष्टि से देखा है, उसके आधार पर में कह सकता हू कि यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । जिस प्रकार एक रोगी व्यक्ति को इजैक्शन द्वारा शीघ्र लाभ होता है उसी तरह उलझे हुए मस्तिष्क को सुलझाने में यह ग्रन्थ इजैक्शन का काम करेगा। इसके अध्ययन से मनुष्य को शीघ्र ही आध्यात्मिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त हो सकेगा । इस ग्रन्थ के दो खण्ड हैं । दोनो मे ९, ९ श्रध्याय हैं । प्रत्येक अध्याय मे स्वतन्त्र रूप से एक विषय को लेकर प्रकाश डाला गया है। इसमें भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से सभी कुछ उत्तम है। यदि चिन्तन पूर्वक एक वार समस्त ग्रन्थ का ग्रध्ययन कर लिया जाए तो मैं विना सन्देह के कह सकता हू कि पाठक को जैन वर्म के मूलभूत सिद्धातों को सन्तोषजनक बोत्र हो जायगा, और जैनधर्म के मन्तव्यो को लेकर उसके हृदय मे जो प्राशंकाए चक्र काटती हैं, वे सब एकदम शान्त हो जाएगी । इस पुस्तक के लेखक मेरे मित्र श्रद्धेय श्री ज्ञान मुनि जी महाराज हैं। महाराज जी ने वडे गम्भीर चिन्तन-मनन के साथ इसे लिखा है और हमे अधिक से अधिक प्रामाणिक तथा हितावह बनाने के लिए इन्होने पूर्ण प्रयास किया है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि आध्यात्मिकता को छाया तले रहने वाले सहृदय जिज्ञासु इससे अवश्य लाभ उठायेंगे।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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