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________________ मेरी दृष्टि में algh ले० - संस्कृत - प्राकृत- विशारद पण्डित श्री हेमचन्द्र जी म० "प्रश्नों के उत्तर” नामक ग्रन्थ को मैंने ध्यानपूर्वक पढ़ा है । मैं अपने अध्ययन के आधार पर निःसन्देह यह कह सकता हूं कि प्रश्नोत्तर के रूप में यह बहुत उपयोगी बहुमुल्य ग्रन्थ लिखा गया है । इसके प्रारम्भ मे पवित्रतम 'जैन' शब्द की व्युत्पत्ति दो गई है । इस के ७,८ पृष्ठो पर धर्म की परिभाषा का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है । स्याद्वाद और सप्नभगो जैसे गहन विषय का इस मे सरल किन्तु तात्त्विक विवेचन किया गया है। जैन दर्शन मे नयवाद का जो विस्तृत एव स्वतन्त्र प्रतिपादन पाया जाता है, वह जैनेत र दर्शनो मे प्रायः समुपलब्ध नहीं है । इस नयवाद का भी इस विशालकाय ग्रन्थ मे बहुत सुन्दर सकनन किया गया है। जैन सिद्धान के प्राणभूत नव तत्त्व और आठ कर्मो का उपयोगो वर्णन भी इस में उपलब्ध है । अनन्त की अनन्तता को समझाने के लिए इस ग्रन्थ के ८५ और ८१ पृष्ठ पर गणित का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया गया है, जो पाठको के लिए पुन पुन. मननीय है । ईश्वर जगत्कर्ता एव कर्म फल प्रदाता है या नहीं? इस प्रकार की ईश्वर-सम्बन्धी अनेक शकाए जनसाधारण और विद्वानो के मस्तिष्को मे चक्कर काटती रहती हैं । इस ग्रन्थ के सम्पूर्ण छठे अध्याय मे ईश्वर विषयक अनेक शकाप्रो का जो सरल और मार्मिक समाधान किया गया है. उसके लिए लेखक मुनि महोदय धन्यवादाई है । यह ग्रन्थ वडे परिश्रम से लिखा गया है । पाठक इसके अध्ययन,
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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