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________________ १००८ भगवई ४० अणतरोववन्नगकण्हलेस्समुहमपुढविक्काइयाण भते । कइ कम्मप्पगडोरो पण्णत्ताओ ? एव एएण अभिलावेणं जहा ओहिओ अगत रोववन्नगाण उद्देसो तहेव जाव वेदेति ॥ ४१ सेव भते । सेव भते । त्ति ।। ३-११ उद्देसा ४२ कतिविहा ण भते । परपरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा । पंचविहा परपरोववन्नगा कण्हल स्सा एगिदिया पण्णत्ता, त जहापुढविक्काइया, एव एएण अभिलावेण तहेव चउक्कयो भेदो जाव वणस्सइ काइयत्ति ।। ४३. परपरोववन्नगकण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयाण भते । कइ कम्मप्प गडीअो पण्णत्तानो ? एव एएण अभिलावेण जहेव प्रोहियो परपरोववन्नगउहेसो तहेव जाव वेदेति । एव एएण अभिलावण जहेव मोहिएगिदियसए एक्कारस उद्देसगा भणिया तहेव कण्हलेस्ससते वि भाणियव्वा जाव अचरिमचरिमकण्हलेस्सा एगिदिया । ३,४ सताई ४४ जहा कण्हलेस्सेहिं भणिय एव नीललेस्सेहि वि सय भाणियव्व ।। ४५ सेव भते । सेव भते । त्ति ।। ४६ एव काउलेस्सेहि वि सय भाणियव्वं, नवर--काउलेस्से ति अभिलावो भाणि- - यवो। पंचमं सतं भवनिद्धीयएंगिदियाणं कम्मप्पडि-पदं ४७ कतिविहा ण भंते । भवसिद्धीया एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा भवसिद्धीया एगिदिया पण्णत्ता, त जहा-पुढविक्काइया जाव वणस्मइकाइया, भेदो चउक्कयो जाव वणस्सइकाइयत्ति ।।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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