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________________ वीयं सतं पढमो उद्देसो ३४. कतिविहा णं भंते । कण्हलेस्सा एगिंदिया पण्णत्ता ? गोयमा । पचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता, त जहा - पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया ॥ ३५ कण्हलेस्सा ण भते । पुढविक्काइया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, त जहा – सुहुमपुढविक्काइया य, वादरपुढविक्का इया य ॥ ३६ कण्हलेस्सा ण भते । मुहुमपुढविक्काइया कतिविहा पण्णत्ता ? एव एएण अभिलावेण चउक्कग्रो भेदो जहेव प्रोहिउद्देसए' ॥ ३७ कण्हले स्सग्रपज्जत्तासहुमपुढविक्काइयाण भूते कइ कम्मप्पगडीओ पण्ण ताओ ? एवं एएण ग्रभिलावेण जहेव प्रोहिउद्देसए तहेव पण्णत्ताओ, तहेव वति, तव वेदेति ॥ ३८ सेव भते । सेव भंते । त्ति ॥ बीओ उद्देसो ३९ कतिविहा ण भते । प्रणंतरोववन्नग कण्हले स्सए गिंदिया पण्णत्ता ? गोयमा । पंचविहा अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिंदिया एव एएण अभिलावेण तहेव दुयन भेदो जाव वणस्सइकाइयत्ति ॥ १. ० उद्देस जाव वरणस्सइकाइयत्ति (स ) । १००७
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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