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________________ ( 258 ) वंधनों से छट कर मोक्ष प्राप्ति के लिये परिश्रम करना चाहिए। मोक्षपद की प्राप्ति केवल मनुष्यगति के जीव ही कर सकते हैं अन्य नहीं। इसीलिये जब मनुष्य-जन्म की प्राप्ति होगई है तब निर्वाणपद की प्राप्ति के लिये पंडित पुरुषार्थ अवश्यमेव करना चाहिए / इति श्रीजैनतत्त्वकलिकाविकासे लोकस्वरूपवर्णनात्मका सप्तमी कलिका समाप्ता। / अथ अष्टमी कलिका मोक्ष (निर्वाण) विषय प्रियमित्रो ! प्रत्येक आस्तिक जीव अपने हृदय में शांति की उत्कट भावना से सदा घिरा रहता है / उसी की प्राप्ति के लिये अन्तःकरण में भिन्न 2 मार्गों की रचना उत्पादन कर लेता है जैसेकि किसी ने धन की प्राप्ति, में शांति का होना मान रक्खा है तथा किसी ने पुत्र की प्राप्ति का होना ही शांति समझा हुआ है इत्यादि / क्योंकि-जिस जीव को अपने अन्तःकरण में किसी वस्तु को प्राप्त होने की उत्कट इच्छा लगी हुई है वह यही समझता है कि-यावत्काल पर्यन्त मुझे अमुक पदार्थ नहीं मिलेगा, तावत्काल पर्यन्त मुझे पूर्ण शांति की प्राप्ति नहीं होगी / कारण कि उस की अन्तरंग वृत्ति उसी पदार्थ की ओर मुकी हुई होती है। . अब अन्तरङ्ग दृष्टि से विचार किया जावे तो प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इच्छानुकूल पदार्थों की प्राप्ति होने पर भी जीव को क्या वास्तिक शांति.. उपलब्ध हो जाती है ? कदापि नहीं / क्योंकि जब वे पदार्थ स्वयं क्षणविनश्वर हैं तो भला उनकी प्राप्ति में किस प्रकार शांति रह सकती है ? अतएव . सिद्ध हुआ कि-बाह्य पदार्थों के मिल जाने पर क्षणस्थायी समाधि तो प्राप्त हो सकती है परन्तु वह शाश्वत समाधि के विना.उपलब्ध हुए कार्य-साधक नही, मानी जा सकती है। जब तक श्रात्मा कर्मों से सर्वथा विमुक्त नहीं हो जाता तथा जब तक आत्मा को निर्वाणपद की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक यह आत्मा वास्तविक शांति से वंचित ही रहता है। कारण कि कर्ता, कर्म और क्रिया तीनों में जो कर्ता की क्रियाएँ (चेष्टाएँ) हैं उन्हीं क्रियाओं के फल का नाम कर्म है / सो यावत्काल पर्यन्त पुद्गल की अपेक्षा से आत्मा क्रिया रहित नहीं होता तावत्काल पर्यन्त यह प्रात्मा निर्वाण पद की प्राप्ति भी नहीं कर सकता। परंच जो शुभ क्रियाएँ हैं उनके द्वारा आत्मा बहुत से कर्मों को क्षय, करता हुश्रा अंतिम अयोगी दशा को प्राप्त हो कर अपने निज, स्वरूप में निमन हो जाता है।
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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