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________________ ( 162 ) हैं / सारा गण उस प्रधान की आज्ञा पालन करता रहता है। श्रीश्रमण भगवान महावीर स्वामी ने जव आनन्द गृहस्थ को श्रावक के 12 नियम धारण करवा दिये, तव आनन्द श्रावक ने श्री भगवान से प्रार्थना की कि-इन गृहीत नियमो को मैं छः कारणों के विना यत्न पूर्वक पालन करूंगा। उन्ही छः कारणों में एक कारण“गणाभिोगेणं" गणाभियोग लिखा है अर्थात् किसी कारण से मुझे यदि 'गण' कहें वागण पति' कहें तोमुझे वह कार्य करणीय होगा परन्तु मेरा गृहीत नियम खंडित नहीं समझा जायगा / कारण कि-उस कृत्यको 'गण' करवा रहा है वा गणराज की आज्ञा से मैं वह कार्य कर रहा हूं इत्यादि / इस कथन से यह भली भांति सिद्ध हो जाता है-कि पूर्व काल में गण वा गणराज का किस प्रकार चारु प्रबन्ध चलता था ? धार्मिक कृत्यों के धारण करते समय भी गणधर्म का अवश्य ध्यान रक्खा जाता था। साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रक्खा जाता था कि हमारे गण मे किसी कारण से फूट न पड़ जाय जिस के कारण गणधर्म का फिर सन्धान करना कठिन होजाए / कारणकि-गणधर्म में विघ्न उपस्थित करना तो सुगम है परन्तुजब गण में फूट पड़ जाती हैं तव गण का सुधार होना अति कठिन हो जाता है, अत. गण में परस्पर वैमनस्यभाव उत्पन्न नहीं करने चाहिएं / जिस प्रकार नियमों द्वारा गण सुरक्षित रह सके, प्रत्येक व्यक्ति को उसी विचार में रहना चाहिए / गण शब्द का ही अपभ्रंश आजकल वरादरी शब्द प्रचलित होरहा है, गणस्थविर के नाम पर चौधरी शब्द व्यवहृत होरहा है। अतएव वही बरादरी ठीक काम कर सकती है जिसके चौधरी दक्ष और बरादरी को उन्नतिशाली बनाने में दत्तचित्त होकर काम करें। क्योंकि-जव गण (बरादरी) गण स्थविर (चोधरी) के वश में होगी वा माला के मणियों के समान एक सूत्र में ओतप्रोत होगी तव जो गण में आपत्तियां होगी स्वयमेव शान्त होजायेंगी। जिस प्रकार माला की मणिये (मणके ) एक सूत्र मे ओतप्रोत होकर स्मरण में सहायक होते हुए देवताओं का आह्वान कर लेती हैं वा परमात्म-पद की प्राप्ति करा देती हैं, उसी प्रकार गण का ठीक प्रकार से संगठन अनेक प्रकार के कष्टों से विमुक्त करके सुख और शांति की प्राप्ति कराने लग जाता है। व्यवहार पक्ष में संगठन को देखकर प्रतिकूल व्यक्तियां अपने आप वैरभाव को छोड़ कर उन से मेल करने लग जाती हैं। तथा जो काम राजकीय सम्बन्धी हों उन्हें गणस्थविर सुख पूर्वक करा सकते हैं। धार्मिक कार्य भी गण स्थविर बड़ी शांति पूर्वक कराते हुए नगर वा देश में धर्म-उद्योत कर सकते हैं। अतएव सिद्ध हुश्रा कि कुल धर्म ठीक होजाने पर गण धर्म भी भलीप्रकार चलसकता है, गणधर्म ठीक होजाने से गण में शांति और परस्पर प्रेम का सर्वप्रकार से
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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