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________________ श्री म०-इस समय तो प्रचंड वायु आदि का भी कोई उत्पात नहीं तो फिर क्यों कर गिर जायगा? ' पुरुष-यूं भी गिर जाया करता है। तव श्री महाराज वा अन्य साधु उठ कर अन्यत्र गये / तब उस पुरुष ने कहा कि-आप शीघ्रता न करें, पहले अपना उपकरण उठालें, फिर यह वृक्ष गिरेगा। तब / साधुओ ने शान्तिपूर्वक उपकरण उठाकर अन्य स्थान पर रख दिये और आप शान्तिपूर्वक बैठ गये / इतना कह कर वह पुरुप अदृश्य होगया, और उसी समय उस वृक्ष . की महती (बड़ी) शाखा जो उस पुल पर फैली हुई थी अकस्मात् गिरी, जिस से l पुल का मार्ग ही बंद होगया / शाखा के गिरते (टूटते) समय इतना भयंकर शब्द हुआ कि जो श्रावकवर्ग दर्शन करके सराय की ओर जा रहा था, उनको भी सुनाई पड़ा / तब वे लोग बहुत ही शीघ्र श्रीमहाराज के दर्शनों के लिये फिर उसी स्थान पर गए / दर्शन करके बहुत ही आनंदित हुए / जब उन्होंने उन वृत्तान्त को सुना तब " उनके हर्ष का पारावार न रहा फिर वे धन्य 2 करते और आपकी स्तुति करते हुए पुन. A वापिस चले गये। एक समय आप नाभा से विहार कर पटियाले की ओर जा रहे थे, तब श्राप / P को एक जंगल मे चीता (शेर की प्राकृति का हिंसक पशु) मिला, आप उस को देखकर / निर्भीक खड़े हो गए / तब वह आप को देखकर शान्ति-पूर्वक आप के पास से गुज़र कर जंगल की ओर ही चला गया। यह सब आपके संयम और शान्ति का ही माहात्म्य / / a था क्योकि प्रत्येक प्राणी के साथ आप को निर्वैरता थी, उसी का यह माहास्य था। निवैरता के ही कारण हिंसक जीव भी श्रापके प्रति निरता का ही परिचय देते थे। अम्बालर के चतुर्मास का वृत्तान्त है कि-एक समय वर्षा होने के पश्चात् मध्याह्न काल में शहर से बहुत दूरी पर श्राप मुनियों के साथ बाहिर गए / जब आप अपनी नैत्यिक क्रियाश्रो से निवृत्त होकर शहर की ओर पधार रहे थे, तब मार्ग मे आप को / साप मिला / वह भी आप के साथ ही साथ चलने लगा / इस प्रकार आपके साथ मि चलता था जिस प्रकार आप का शिष्यवर्ग श्राप के साथ गमन करता था। जब श्राप मार्ग परिवर्तन करने लगे, तब आपने फरमाया कि-ऐसे न हो इसे कोई भार ढाले / इतना वाक्य आप के मुख से सुनते ही वह सांप आप के देखते ही देखते एक भाड़ में , प्रविष्ट होगया। पश्चात् आप शहर में पधार गए / यह सब शान्ति का ही माहात्म्य था कि जो हिंसक जीव भी आप के साथ भद्रता का ही परिचय देते थे / फीरोजपुर / शहर में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी। जब आप नैत्यिक क्रियाओं से निवृत्त होने SixexxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxeEEKXEXPER
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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