SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Exce Xxure XXCSXESEXEXOS XEXICO EXERXXxXRAKAR EXCOOKeXXXREEKXSEXSEXXXCXXCEDEKXCOXXHDXXnxxaneKXEXXEKXEEEXXCXXEHREEKACTREKKICKASANE बनाकर नगर में प्रवेश करना पड़ता था / कितना ही काल श्राप इसी प्रकार विचरते रहे। 1669 का चतुर्मास खरड शहर में किया। 1966 का चातुर्मास आपने फरीदकोट में किया / फिर आपने चतुर्मास के पश्चात् कई नगरों में विचर कर 1967 का चतुर्मास लाला गौरीशंकर वा लाला परमानन्द बी-ए-एल-एल-बी के स्थान में कसूर शहर में किया 1668 को चतुर्मास आपने अम्बाला शहर मे किया। जब आप राजपुरा से श्राषाढ़ मास में अम्बाला की और पधार रहे थे तब आपके साथ एक देवी घटना हुई / जैसेकि-जब आपने राजपुरा से अम्बाला की ओर विहार किया तब आपका विचार था कि-मुगल की सराय में ठहरेंगे। मार्ग में राजकीय सड़क पर एक पुन था, और उस पुल के पास ही एक बड़ा विशाल वृक्ष था जिसकी शाखाएँ और प्रतिशाखाएँ पुलपर फैली हुई थीं। उस वृक्ष की छाया में आप अपने मुनियों के साथ विराजमान होगए / पानी के पात्र खोलकर रख दिए। अन्य जो साधुओं के वस्त्रादि उपकरण थे वे स्वेद (पसीने) से आई (गीले) थे, वे भी शुष्क होने के a. लिए फैलादिए गए / अापका विचार था कि-थोड़ा सा दिन रहते हुए सराय में पहुंच जाएंगे। उसी समय अम्बाला शहर का श्रावक वर्ग भी आपके दर्शनों के लिये उसी स्थानपर पहुंच गया। उन्हें भी आप श्रीजीने फरमाया कि-हम थोड़े से दिन के साथ सराय पहुंचेंगे तब श्रावक वर्ग मांगलिक पाठ को सुन कर वहां से वापिस चल पड़ा। तत्पश्चात् उसी समय एक पुरुष श्रीमहाराज जी के पास अकस्मात् आकर खड़ा होगया, और टिकटिकी लगाकर साधुओं के उपकरण को देखने लगा। आप श्री जी ने फरमाया कि क्यों देखते हो? ये तो साधुओं के पुस्तक वा पात्र तथा वन्न हैं और साधुवृत्ति इस प्रकार की होती है तब वह पुरुष आप श्री जी के साथ इस प्रकार वार्तालाप करने लगा जैसे कि पुरुष-आप कौन हैं ? श्रीमहाराज-हम साधु हैं। ' 'पुरुष-ये पदार्थ क्या है श्रीम०-ये वस्त्रादि साधुओं के उपकरण हैं अर्थात् धर्म-साधन के पदार्थ हैं। ' / पुरुष-श्राप इस स्थान से उठ जाइये / श्रीम-क्यो ?. शुरूष—यह वृक्ष गिरने काला है। HERETOXX KOKarker mixxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy