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________________ ( 194 ) 72 सहस्र इस सूत्र के पद हैं इसके अक्षर वा अनुयोगद्वारादि संख्यातही और "जीवाभिगम" नामक सूत्र इसका उपांग है / उसमें भी उक्त क्रम से पदार्थों का वर्णन किया गया है। सर्वज्ञोक्त पदार्थों के जानने के लिये यह सूत्र परमोपयोगी है। ३समवायाङ्ग सूत्र-इस सूत्र में एक सख्यासे लेकर सौसंख्या तक तो क्रमपूर्वक पदार्थों का वर्णन किया गया है। तदनन्तर कोटाकोटि पर्यन्त गणनसंख्यानुसार पदार्थों का वोध कराया गया है / इतना ही नहीं किन्तु साथ ही द्वादशाङ्ग वाणी के प्रकरणों का संक्षेप से परिचय कराया गया है। कुलकर वा तीन कालके तीर्थंकरों आदि के नामोल्लेख भी किये गए है / प्रसंगवशात् अन्य प्रकरणों का भी यत्किंचिन्मात्र विवरण दिया गया है / जिसप्रकार स्थानांग सूत्र मे जीवादि पदार्थों का वर्णन है ठीक उसी प्रकार समवायांग सूत्र में भी कोटाकोटि पर्यन्त गणन सख्या के अनुसार पदार्थों का वोध यथावत् कराया गया है / परंच इस सूत्र का एक ही श्रुतस्कंध है, पुनः एकही अध्ययन है अतः एकही उद्देशन काल है। किन्तु पद संख्या 144000 है / अनंतज्ञान से परिपूर्ण है और इस सूत्र का प्रज्ञापना (पण्णवना) नामक उपांग है जिसके 36 पद है अपितु उन पदों का अनुष्टुप् छन्द अनुमान 7800 के परिमाण है। उक्त छत्तीस पदों में अतिगहन विपयों का समावेश किया गया है। इसे जैन सैद्धान्तिक आगम माना जाता है। यद्यपि इस सूत्र में प्रत्येक विषय स्फुट रीति से प्रतिपादन किया गया है तदपि विना गुरु के उन विषयों का वुद्धिगत होना कोई सहज नहीं। अतएव गुरुमुख से विधिपूर्वक इस सूत्र का जैन सिद्धान्त जानने के लिए और पदार्थों का ठीक ज्ञान प्राप्त करने के लिये अध्ययन अवश्यमेव करना चाहिए / पदार्थ विद्या का स्वरूप इस सूत्र में बड़ी योग्यता से वर्णन किया गया है / यावन्मात्र प्रायः आजकल साइंस द्वारा नूतन से नूतन आविष्कार होरहे है / इससूत्र के पढ़ने से आजकल के भावों को देखकर विस्मय भाव कभी भी उत्पन्न नहीं होता / अतएव प्रत्येक व्यक्ति को योग्यतापूर्वक इस सूत्र का पठन पाठन करना चाहिए। 4 व्याख्या प्रज्ञप्त्यंग-इस सूत्रका प्रचलित नाम "भगवती" सूत्र भी है। इस सूत्र में नाना प्रकार के प्रश्नों का संग्रह किया हुआ है / 36 सहस्र (36000) प्रश्नोत्तरों की संख्या प्रतिपादन की जाती है / दश सहस्त्र 10000 इस के उद्देशन काल हैं। प्रत्येक प्रश्नोत्तर शंकासमाधान के साथ वर्णन किया गया है, इतनाही नहीं अपितु प्रत्येक प्रश्नोत्तर पहलौकिक पारलौकिक विषयके साथसम्बन्ध रखता है जैसेकि-राजकुमारी जयंती ने श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्रश्नकिया कि-हे भगवन् ! वलवान् आत्मा श्रेष्ठ होते हैं या निर्वल ? इसके
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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