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________________ ( 80 ) टी०-समभिरूढ़ः समतिशयेन व्याकरणव्युत्पत्त्याचारूढ़मेवार्थमभिमन्वानः समभिरूढ़ो नयः पर्यायभेदतः पर्यायशब्देन भेदः पर्यायभेदस्तस्माद भिन्नं पृथक् भूतेमवार्थवाच्यं ब्रूते मन्यते कुतो? वर्द्धमानस्वामिना कुंभकलशघटशब्दाभिन्नार्थाः पृथगर्थवाचकाः कथिता यथा-कुम्भनात् कुम्भः कलनात् कलशः घटनात् घटस्ततः सिद्धं शब्दभेद वस्तुभेदो घटपटादिवत् // .15 // भा०-समभिरूढ़नय व्याकरण शास्त्र की व्युत्पत्ति के साथ भिन्न पर्याय के शब्दों के भिन्न 2 अर्थ के होने से पदार्थों को मानता है, जैसे किकुंभन होने से कुंभ कलन होने से भिन्न कलश चेष्टा करने से घट, सो शब्दभेद होने से वस्तु भेद् इस नय के मत से स्वयमेव ही हो जाता है। सारांश इसका इतनाही है कि-यावन्मात्र पर्यायवाची शब्दों के नाम हैं तावन्मान ही वस्तु भेद और अर्थ भेद इस नय के मत से माने जाते हैं क्योंकि इस नय का अर्थ केवल अभिधेय ही नहीं है, किन्तु पर्याय वाची शब्द, फिर उन शब्दों के भिन्न भिन्न अर्थो को स्वीकार करना इस नय का मुख्योद्देश्य है। यदि पयार्यभेदेऽपि न भेदो वस्तुनो भवेत् भिन्नपर्याययोर्न स्यात् सकुम्भ-पट्योरपि // 16 // टी-यदि शब्दपर्याय भेदेऽपि वस्तुनः पदार्थस्य भेदो न भवेन्नजातस्तर्हि भिन्नः पर्यायः शब्दो ययोस्तौ भिन्नपर्यायौ तयोः कुंभ-पटयोरपि स भेदो नस्यादित्यर्थः // 16 // अर्थ-यदि शब्द और पर्याय के भेद होने पर भी वस्तु का भेद न माना जाय तो फिर पर्यायभेद और शब्दभेद होने पर भी वस्तुओं का भेद न होना चाहिए। जैसे कि-घट और पट यह दोनों पदार्थ भिन्न 2 पर्यायों और भिन्न 2 शब्दों वाले हैं, यदि अर्थ भेद न माना जायगा तो उक्त दोनों का भेद भी सिद्ध न हो सकेगा। अतएव इस नय के मत में शब्द भेद के द्वारा वस्तु के अर्थभेद का होना आवश्यकीय मानागया है। अव एवंभूत नय के विषय में कहते हैं। एकपर्यायाभिधयमपि वस्तु च मन्यते कार्य स्वकीयं कुर्वाणमेवमूतनयो ध्रुवम् // 17 // टी०-एवम्भूतनामा नयः एकपर्यायाभिधेयमपि एक एव यः पर्यायः शब्दः स एकपर्याय एक शब्दस्तेनाभिधयमपि वस्तु वाच्यम् / च पुनर्विद्यमान भाव रूपमपि ध्रुवं निश्चयेन स्वकीयमात्मीय कार्य निजाथ क्रियां कुर्वाण पश्यति तदैव तद्वस्तु वस्तुवन्मन्यते नान्यदा "अर्थक्रियाकारिसत्” इति जिनोपदेशो वर्तते अतो यत् स्वार्थक्रियाकारि तदेव वस्तु इत्यर्थः // 17 // भा०-एवंभूतनामा नय के मत में एक पर्याय के अभिधेय होने पर भी
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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