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________________ ( 76 ) टीका-अयमृजुसूत्रनय एप्वनन्तरं वक्ष्यमाणेषु चर्तुषु निक्षेपेयु एक भावनिक्षेपमेव वास्तवं मन्यते, नामस्थापनाद्रव्याणि न मन्यते. तेषां परकीयत्वादनुत्पन्नविनष्टत्वाच्च, तत्र नाम वक्तुरुल्लापरूपं वा गोपालदारकादिपु गतमिन्द्राभिधानं परकीयं स्थापना चित्रपटादिरूपा परकीया द्रव्यं पुनर्भाविभावस्य कारणं तच्चानुत्पन्नं भूतभावस्य कारणं तु विनष्टम् एवमग्रतनाः शब्दादयस्त्रयो नया भावनिक्षेपमेव स्वीकुर्वन्तीत्यर्थः / / 13 // भा-यह ऋजुसूत्रनय नाम स्थापना द्रव्य और भाव इन चारों निक्षेपों में से केवल भाव निक्षेप को ही स्वीकार करता है, क्योंकि--उसका यह मन्तव्य है कि-परकीय वस्तु अनुत्पन्न और विनष्ट रूप है, अतः वह कार्य साधक नहीं हो सकती / गोपालदारकादि में इन्द्रादि का नाम स्थापन किया हुआ कार्य साधक नहीं होता है। इसी प्रकार चित्र पटादि रूप भी परकीय पर्यायों के सिद्ध करने में असमर्थ देखे जाते हैं। जैसे-किसी ने किसी का चित्र किसी वस्तु पर अंकित करदिया, तव वह चित्र उस व्यक्ति की क्रियाओं के करने में असमर्थ है। केवल वह देखने रूप ही है / अतएव इस नय का मन्तव्य यही निकलता है / भाव निक्षेप ही जो वर्तमान काल में विद्यमान है वही अभीष्ट कार्य की सिद्धि करने में समर्थता रखता है / नतु प्रथम तीन निक्षेप कार्य साधक हो सकते हैं। इसी प्रकार अगले तीन नय भावनिक्षेप को ही स्वीकार करते हैं / तथा च अर्थ शब्द नयोऽनेकै पर्यायरेकमेव च मन्यते कुम्भकलशघटायेकार्थवाचका // 14 / / टीका-शन्दनामा नयः शब्दः पुंस्त्री-नपुंसकाद्यभिधायकोलाप स्तत्प्रधानो नयः शब्दनयः स अनेकैः शब्दपर्यायैरुक्तोऽपि अर्थ वाच्यं पदार्थमेकमेव मन्यते, कुतः ? हि यस्मात् कुम्भः कलशो घटः एते शब्दाः सर्वदर्शािभर्जिनैरेकस्य घटाख्यपदार्थस्य वाचकाः कथितास्ततः सिद्धमनकै. पर्यायैरुकोऽप्यभिधेय एक एवेत्यर्थः-- // 14 // भा०-शब्दनय पुल्लिंग स्त्री. नपुंसकलिंग आदि अनेक प्रकार के शब्दों के अर्थों को जानकर जो अर्थों को प्रधान रखता है, उसी का नाम अर्थ है। जैसे कि-कुंभ कलश घट यह सव भिन्न शब्द होने पर भी घट शब्द के अर्थ के ही वोधक हैं। अतएव अनेक पर्यायों के शब्द अनेक होने पर भी अर्थनय अर्थ (अभिधेय) को ही मुख्य रख कर एक ही मानता है। व्रते समभिरुदोऽथ भिन्नपर्यायभेदतः भिन्नार्थी कुंभकलशघटाघटपटादिवत् // 15 //
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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