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________________ मगम म ( 194 ) fill पेग को स्पिर सप चितम से शान्त कर ले। * ४माम्सी पारमा-फिर पोगी महामेप का पिठन करे स किपा मेमपाप कर्म जो पोती और भारमा को कर्म फलंक से विमुक्त करके राय पना रही है। इसी का + माम पाल्पी पारखी। 5 तत्परूपमती पारपा-स पारवा का या मम्तम कि मारमा प्रयोगमा तो पिरग्सी राग भारमा का म्पान करना चाहिए। जैसे कि कम सिासन पर बैठेप विचार करे कि पहरी मेप मारमा सर्या साशी सर का उपास्पदप अगर प्रमर परमात्मा मोर परमेम्बरसी 2 प्रकार के प्यानको वतापपती पारपा कावे। इसी का म नाम पिपडस्प प्पान है। अब पिरस्म म्याम का अम्पास मती प्रकार से माप तब / फिर नामिमंगल में सोमा समाते ममपसकी स्थापना करके फिर सन पलों में परमाता के पों की स्थापना करनी चाहिए / फिर उसके मध्य माग की किरशिप में एक सुन्दर सिंहासन की कल्पना करणे फिर स पर मारो कर मोम् मम्' 'सोअम्' इस्पारि पदों का ध्यान करना पाहिए तपा प्रत्यय वासोवास रे साप 'मान् ऐसा शाप पार करना पाहिए / इस पद के प्यान से मिशास की मा मनोकामना पूरी हो जातीभिता परसम्पाना यी विषय है कि भमुष्प्रमुफ पदो से अमुक अमुक कार्प की सिदिह गाती है। इसलिये इस म्पान को परस्प प्यान परत है। पन्सम्याउन 8 - L
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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