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________________ Xxxxxxi KARAMICHKIRATRAKARMIX3 ( 123 ) व्याख्या किस प्रकार से की जाती है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है कि इन धारणाओं की संक्षेप से व्याख्या इस प्रकार जाननी चाहिए। 1 पार्थिवी धारणा-तिर्यक् लोक में क्षीर समुद्र का चिन्तन करके फिर उसके मध्य भाग में एक सहस्त्रदल कमल का चितन करना चाहिए फिर उसकी कर्णिका के मध्य भाग म एक सुवर्णमय सिंहासन का चिन्तन करना चाहिए फिर उस श्रासन पर स्थित होकर निज श्रात्मा का चिन्तन करना चाहिए / जैसे कि मेरा ही आत्मा रागद्वेष के क्षय करने में समर्थ है और यही प्रात्मा परमात्म गुणों से युक्त है इत्यादि विचार करने से पार्थिवी धारणा का स्वरूप माना जाता है। इसी को पार्थिवी धारणा कहते हैं। 2 आग्नेयीधारणा-नित्य अभ्यास करने वाला योगी अपने नाभिमण्डल में सोलह दल वाले कमल का चिन्तन करे फिर उन दलों में अकारादि सोलह वर्ण मात्राओं को स्थापन करके फिर मध्य कर्णिका में 'आहे' शब्द का चिन्तन करे / इतना ही नहीं किन्तु हृदयस्थ कमल जो आठ दल वाला है उसके * आठों दलों में आठों कर्मों की मूल प्रकृतियां मानों 'अहम्' शब्द से निकलती हुई प्रचंड ज्वाला द्वारा उन कर्मों को भस्म कर रही हैं इस प्रकार से चिंतन करे / इसी का नाम श्राग्नेयी धारणा है। 3 मारुती धारणा-फिर योगी इस बात का विचार करे / a कि जो पाठ कर्मों की वा शरीर की भस्म है, उसको महावायु वेग उड़ा रहा है और फिर उस भस्म के उड़ जाने से श्रात्मा निर्मल और परम पवित्र हो गया है तथा उस वायु EATHEY AREAKEREXITICE MRODXXXXXXDIXYOXEXEXMEAKERXNCM TERTAIEXXX
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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