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________________ प्रथमो वर्गः] भाषाटीकासहितम् । करके निर्वाण-पद की प्राप्ति कर सकते हैं । किन्तु उनका पण्डित-वीर्य पुरुषार्थ किसी भी दशा में निरर्थक नहीं जाता । अतः इस 'सूत्र' की सार्थकता और सप्रयोजनता भली भांति सिद्ध है । इस सूत्र से यह भी सिद्ध होता है कि गुरु-भक्ति से ही श्रुत-ज्ञान की अच्छी तरह से प्राप्ति हो सकती है। अब जम्बू अनगार सुधा स्वामी से फिर प्रश्न करते हैं: जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अणुत्तरोव० समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णते ? ___ यदि नु भदन्त ! श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन प्रथमस्य वर्गस्य दशाध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, प्रथमस्य नु भदन्त ! अध्ययनस्यानुत्तरोपपातिक-दशानां श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन् ! जइ-यदि जाव-यावत् संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए समणेणं-श्रमण भगवान ने पढमस्स-प्रथम वग्गस्स-वर्ग के दस-दश अज्झयणा-अध्ययन पएणत्ता-प्रतिपादन किये हैं, तो भंते-हे भगवन् ! पढमस्सप्रथम अझयणस्स-अध्ययन अणुत्तरोवळ-अनुत्तरोपपातिक-दशा के जाव-यावत् संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त हुए समणेणं-श्रमण भगवान् ने के-क्या अद्वे-अर्थ पएणत्ते-प्रतिपादन किया है। ___ मूलार्थ-हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् ने प्रथम वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो हे भगवन् ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? । टीका-पिछले सूत्रों का प्रश्नोत्तर-क्रम इस सूत्र में भी रखा गया है।
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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