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________________ १०] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम्। [प्रथमो वः जम्बू! इस प्रकार मोक्ष को प्राप्त हुए श्री भगवान् ने प्रथम वर्ग, अनुत्तरोपपातिकदशा, के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे-जालि कुमार, मयालि कुमार, उपजालि कुमार, पुरुषसेन कुमार, वारिसेन कुमार, दीर्घदांत कुमार, लष्टदांत कुमार, वेहल्ल कुमार, वेहायस कुमार और अभय कुमार । यही प्रथम वर्ग के अध्ययनों के नाम हैं। टीका-इस सूत्र में इस ग्रन्थ का विषय संक्षेप में बताया गया है और साथ ही इसकी सप्रयोजनता भी सिद्ध की गई है । जम्बू स्वामी ने अत्यन्त उत्कट जिज्ञासा से सुधर्मा स्वामी से पूछा कि हे भगवन् । श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के कितने वर्ग प्रतिपादन किये हैं ' इस पर सुधम्मा अनगार ने बताया कि उक्त सूत्र के तीन वर्ग प्रतिपादन किये गए हैं । फिर जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया कि उन तीन वर्गों मे से पहले वर्ग के कितने अध्ययन प्रतिपादन किये गये हैं ? उत्तर मे सुधा स्वामी ने कहा कि श्री श्रमण भगवान् ने पहले वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं। इनके नाम क्रम से निम्नलिखित हैं: १-जालि कुमार २-मयालि कुमार ३-उपजालि कुमार ४-पुरुषसेन कुमार ५-वारिसेन कुमार ६-दीर्घदान्त कुमार ७-लष्टदान्त कुमार ८-वेहल्ल कुमार ९वेहायस कुमार और १०-अभय कुमार । यही इन दश अध्ययनों के नाम हैं। 'मयालि कुमार' शब्द के संस्कृत मे कई प्रकार के अनुवाद हो सकते हैं। जैसे-मकालि कुमार, मगालि कुमार और मयालि कुमार आदि । क्योंकि "कगचजतदपयवां प्रायो लुक्” ८1१।११७॥ इस सूत्र से सूत्रोक्त व्यञ्जनों का लोप हो जाता है और फिर अवशिष्ट अकार के स्थान मे "अवर्णो य-श्रुतिः" ८।१०।१८०॥ इस सूत्र से यकार हो जाता है । किन्तु 'अर्द्ध-मागधी-कोष' में इसका मयालि कुमार' ही अनुवाद किया गया है । अतः यह नाम इसी तरह प्रसिद्ध हो गया है। अव प्रश्न यह उपस्थित होता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ की सार्थकता या सप्रयोजनता किस प्रकार सिद्ध होती है ? उत्तर में कहा जाता है कि जो भव्य व्यक्ति अपने वर्तमान जन्म में सर्वथा कर्मों के क्षय करने में असमर्थ हों, वे इस जन्म के अनन्तर पांच अनुत्तर विमानों के परम-साता-वेदनीय-जनित सुग्वों का अनुभव
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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