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________________ आधुनिक विज्ञान और हिंसा "चल उन्नत जग मे जबकि श्राज विज्ञान ज्ञान । वह भौतिक साधन यन्त्र यान, वैभव महान् । सेवक है विद्युत, वाप्प शक्ति, धन-बल नितांत 1 फिर क्यों जग में उत्पीड़न ! जीवन क्यों श्रशांत !" आश्चर्य होता है कि उन्नत विज्ञान द्वारा मनुष्य को नित्य नये मुखसाधन प्राप्त होते हुए भी जीवन मे शाति क्यों नहीं मिलती ! वह नीति, धर्म और सदाचार से विमुख हो विलासिता पूर्ण जीवन के प्रति क्यो प्राकृष्ट हो रहा है । अल्प श्रम द्वारा प्राप्त साधन मनुष्य को किस सीमा तक अकर्मण्य बना देता है । जहाँ विज्ञान द्वारा प्रपेक्षित सुखोपलब्धियाँ प्राप्त हुई, वहाँ नये रोग, ग्रामोद-प्रमोद का भावनाएँ मानव समाज मे अधिक विकसित हुई । प्रश्न होता है इस वैज्ञानिक विकास के प्रकाश मे देखें कि क्या ग्राज पूर्वजो की पेक्षा नैतिक र सास्कृतिक धरातल हमारा उन्नत है ? क्या हम अधिक ग्रात्म-विश्वासी व श्रद्धाशील है ? यदि नही तो मानना पड़ेगा कि विज्ञान हमारा अधिक समय तक पारम्परिक रूप से मार्ग प्रदर्शन करने मे सक्षम नही है । अनावश्यक आवश्यकताओ की वृद्धि और इनकी उपभोगमूलक प्रवृत्तियाँ वौद्धिक तथ्य से परे है । रस-हीन जीवन अपनी वास्तविकता खो बैठता है । 80 वैज्ञानिक यन्त्रोका ग्राविष्कार मानव-मुख-समृद्धि का एक अग रहा है, पर आज तो यत्रवाद ने मानव समाज पर श्राधिपत्य स्थापित कर रखा है। उत्पादन बाहुल्य से ग्रामोद्योग की प्रवृत्तियो के मंद होने के कारण तत्रस्थ श्रमिकों की न केवल बेकारी ही बढ़ी है, अपितु वे सब विशाल नगरो की ओर आकृष्ट होने लगे है । यहाँ उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि अपने परिवार का पालन तक सुचारु रूपेण नही कर पाते, क्योकि लक्ष्मीनन्दनो द्वारा उनका शोषण हो जाता है । स्पष्ट कहा जाए तो इस यत्रवाद के प्रसार से ही दिनानुदिन वेकारी वढती जा रही है । ऐसी स्थिति मे न तो समानता के आधार पर सपति का वितरण ही होता है, न वर्ग सघर्ष की भावनाएं ही शिथिल पड़ती है और न मनुष्यो मे इकाई ही सभव है । जहाँ विज्ञान ने साम्य के स्थान पर वैपम्य को प्रतिष्ठित किया, वहाँ धर्म, साहित्य और हस्तकला उद्योग को प्रोत्साहित करने का अवकाश ही कहाँ ?
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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