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________________ पन्द्रह - आधुनिक विज्ञान द्वारा मानव-सेवा याज के उन्नन विज्ञान ने मानव-जीवन और समाज के प्रत्येक क्षेत्र को न केवल स्पर्ग ही किया हे अपितु सर्वांगीण विकास की सुदृढ़ परम्परा भी कायम की है। धर्म और दर्शन के क्षेत्र में भी नया दृष्टिकोण प्रदान करते हुए प्राचीनतम अनिवार्य रहस्यों के प्रति भी समीचीन दृष्टि दी है। राष्ट्रीय वैषम्य, दूरत्व, निर्यात प्रादि कई तथ्यों में सामजस्य स्थापित किया है। आध्यात्मिक दृष्टि से एक मनुप्य वर्षो तक साधना कर जो फल प्राप्त करता था, उसके प्रसार और विकास मे दीर्घकाल की अवधि अपेक्षित थी। पर आज के वैज्ञानिक युग में एक व्यक्ति की अल्पकालिक साधना लाखो का मार्ग प्रदर्शन करती है, जीवन मे साम्य स्थापित करती है और इसका प्रसार भी अत्यन्त गीत्र विश्वव्यापी बन जाता है। हम यह नहीं चाहते कि विज्ञान द्वारा प्राप्त फलो को एक-एक करके गिनाएँ । यदि एक शब्द मे कहा जाय तो विज्ञान मानव जाति के लिए एक वरदान है। वह अभिशाप तव प्रमाणित होता है जब वह सूजन का पथ छोड़कर विध्वस की ओर गतिमान होता है । वह गान्ति का सन्देश दे और वैषम्य मे साम्य स्थापित कर सके तभी हमारे लिए वह वरदान है। आइन्स्टाइन ने ठीक ही कहा है कि "विज्ञान विव्वस के लिए नहीं है, जो राज्य विज्ञान का दुरुपयोग करता है और उसका उपयोग दूसरो को डराने या अन्य पर प्रभाव जमाने के लिए करता है, वह न केवल विज्ञान का, अपितु वैज्ञानिको की ग्रात्मा का शोपण करता है।"
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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