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________________ 56 आधुनिक विज्ञान पीर अहिमा भारतीय वेद वेदाङ्गादि साहित्य मे ही सूर्य का यशोगान किया है, अपितु ठेठ लोक साहित्य तक में सूर्य-कीर्ति की परपरा याज भी अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है । आन्तरिक जगत के क्रमिक विकास में काम पाने वाली मूर्य गक्ति की उपयोगिता से भारत का बच्चा-बच्चा परिचित रहा है। पर मूर्य की प्राकृतिक उपयोगिता किसी भी दृष्टि से किसी भी अग में कम नहीं है। जब वैज्ञानिक सम्पूर्ण शक्तियों पर नियन्त्रण करने के लिए कटिबद्ध थे तो इस प्रत्यक्ष और अत्यधिक कार्यशील शक्ति के प्रति कैसे उदामीन बने रहते । फलस्वल्प कैलिफोर्निया के दक्षिण पोसडीना मे दग अश्व शक्ति का एक वॉइलर सूर्य ताप निर्मित वाप्प से चलता है, जिससे एक मिनट में 1400 गैलन जल निकाला जा सकता है । व्यय भी बहुत अत्प पाता है । इतने सूर्य-किरणोत्पन्न विद्युत् शक्ति के प्रयोगो में आशातीत मफलता प्राप्त की है। वस्तुत पृथ्वी के प्रत्येक ऊष्ण कटिबन्ध प्रदेश में सूर्य ताप की शक्ति का अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है। ईंधन के रूप में भी मूर्य शक्ति का प्रयोग होता है। आज जिस शक्ति की अोर वैज्ञानिको का बहुत कम व्यान गया है वह है ज्वार शक्ति । समुद्र और बडी नदियो मे उठने वाले ज्वारो का उपयोग अपेक्षाकृत कम हुआ है। यदि इसका समुचित उपयोग बड़े विस्तृत रूप से किया जाय तो बहुत बड़ा कार्य हो सकता हे । अमेरिका और इग्लैण्ड तथा कुछ अन्य पश्चिमी देशो ने ज्वार की शक्ति को एकत्रित कर उसका समुचित उपयोग अच्छे ढग से किया है और अब इसकी शक्ति की तुलना भविप्य में जल विद्युत् के मुकाविले मे टिक सकेगी ऐसी पूर्ण सम्भावना है। प्राकृतिक शक्तियाँ अनेक है। दिनानुदिन विज्ञान द्वारा इन पर प्रभुत्व प्राप्ति के पुरुषार्थ वृद्धिगत होते जा रहे है । सम्भव है ज्ञात शक्तियो द्वारा ही अज्ञात शक्तियो की उपलब्धि का सूत्रपात भविष्य में हो जाय, जिनसे सामाजिक जीवन मे और भी अधिक सुतुलन स्थापित किया जा सके। आणविक शक्ति का अद्यावधि मानवोपयोगी तथ्य की दृष्टि से उतना अधिक विकास नहीं हो पाया है। पर जहाँ तक ध्वसात्मक साधनो का प्रश्न हे अणुशक्ति सर्वाधिक सफलता प्राप्त करती जा रही है। शक्ति वही है जो निर्माण को गति दे । ध्वस की अोर गतिमान शक्ति अपनी "शक्ति सज्ञा" को कहाँ तक
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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