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________________ आधुनिक विज्ञान और ग्रहिसा समाज की अर्थ- प्रधान और भौतिक दृष्टि बदलने के लिए हमे श्रहिसा का ही सहारा लेना पड़ेगा। मार-काट, वलात्कार, दड या अत्यधिक दबाव द्वारा समाज में परिवर्तन का क्षणिक प्राभास हो सकता है, परन्तु वास्तविक या स्थायी परिवर्तन नही आता । समाज मे स्थायी परिवर्तन लाने के लिए हमे अहिसा के माध्यम से उपर्युक्त त्रिपुटी को अपनाना होगा । विचारक्रान्ति द्वारा पहले व्यक्ति के हृदय में परिवर्तन होगा, शनै गर्नः व्यापक रूप से उन विचारो के फैल जाने पर समाज का विचार परिवर्तन होगा | फिर भी सारा समाज उन विचारो के अनुसार व्यवहार नही करने लगेगा । उसके लिए परिस्थिति मे परिवर्तन लाना आवश्यक होगा । परिस्थिति परिवर्तन के लिए अहिंसा के दो प्रकार के प्रयोग करने होगे —— प्रतिकारात्मक और विधेयात्मक । इन दोनों प्रकार के प्रयोगों मे हिंसा भगवती के दोनो चरणो— सयम और तप का उपयोग होगा । तभी परिस्थिति मे परिवर्तन होगा और अन्त मे सरकारी कानून भी उस पर अपनी मुहर लगाने आ जाएगा। एक उदाहरण से हमारा भाव स्पष्ट हो सकेगा । 154 मान लीजिए, किसी गाँव मे 20 बुनकर परिवार है । वे बुनाई का धन्धा करते है | परन्तु मिल का कपड़ा गाँव मे फैल जाने से उनका व्यवसाय ठप हो गया है । वे वेकार और वेरोजगार हो रहे है । ऐसी स्थिति मे ग्राम के ग्रहिंसा प्रेमी विचारक ग्रामवासियो को अपने अहिंसा सम्बन्धी विचार समझाएँगे । कहेगे मिल के वने वस्त्र खरीदकर गाँव के लोगो को भूखा मारना हिंसा है । ग्रहिसा इसी मे है कि ग्राप बुनकर भाइयो के हाथ के वने वस्त्र ही खरीदे, फिर भले ही वे महँगे ही क्यो न हो । 1 यह विचार उनके गले तक तो उतर जाएगा परन्तु प्रार्थिक पहलू और सामाजिक प्रतिष्ठा उनमें से बहुतो को तदनुसार व्यवहार करने से रोकेगी । किन्तु जिनका हृदय परिवर्तन हो चुका है और जो अहिसा के महत्त्व को समझ चुके है वे निष्क्रिय होकर नही बैठेगे । वे ग्राम सभा मे अपने विचार प्रस्तुत करेंगे । सभा इस वात को स्वीकार करेगी और उसकी स्वीकृति नियम का रूप धारण कर लेगी। अगर कोई उस नियम को भी चुनौती देगा और प्रेमपूर्वक समझाने पर भी नहीं मानेगा तो ग्रहिंसक शुद्धिप्रयोग
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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