SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यानिन विज्ञान का रचनात्मक उपयोग है जब सजनात्मक रूप मे इसका उपयोग हो । नरमहार के कारण ग्रणु शक्ति वो बहुत बडे अपयश का सामना करना पटा है । यद्यपि यह पर्याप्त व्यय साध्य है, पर मनिक व्यय में इसका विचार ही किया जाता | यदि इसका औद्योगिक क्षेत्रो में सफलता के साथ विवास किया जाय तो न केवल ईंधना को ही वचन होगी, अपितु श्रय वाय भी अल्प व्यय में ही सम्पन्न हो जायेंगे। प्रसन्नता का विषय है कि भारतीय शासन न वज्ञानिको को समुचित प्रोत्साहन देना प्रारम्भ कर दिया है और श्री भाभा के नेतृस म बम्बई के निकट प्राणविक भट्टी कुशलता से वाय कर रही है। भारत में कच्चे माल को कभी नही है । यूरेनियम भी समुपलव्य है । 133
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy