SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विज्ञान पर अहिमा का अकुश 131 दृष्टिकोण होना चाहिए । दृष्टि-सम्पन मानव के लिए विश्व की कोई वस्तु स्याज्य नहीं है। गुणमाहाता व उसके उपयोग से परिचित होना आवश्या है। ससार म सत्य एक होकर भी वयक्निक भेद के कारण भनेर है । इस अनवता में मुख्य कारण दृष्टि भेद है । एक ही वस्तु विभिन्न दृष्टि-भेदो के कारण कईम्पो म परिवर्तित हो जाती है। उदाहरणाय एवं अस्थिपजर को देगकर शरीर शास्त्रवत्ता इस घोष की वस्तु समभकर अनुसघान मे जुट जाता है । इसी अस्थिपजर से दागतिर वैराग्यमय भावनामा म तल्लीन हो जाता है । एव सान इसे देखकर भोज्य वस्तु समझ बैटता है। तात्पर्य यह कि एक वस्तु के दृष्टि भेद के कारण कई उपयोग होने देखे गये हैं। इसी प्रबार विभिन दृष्टियोसे विनान ये भी कई उपयाग हैं। एकागी उपयोग से हीशान्ति को जम मिलता है। यदि अहिंसामय जीपा-यापन करने वाला ये हाथ में वानिय प्रयोग शक्ति का मून हा तो निसदह यह निपत्रित विमान दृष्यी यो स्वर्ग के रूप म परिवनिन पर सवना है।
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy