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________________ हिमात्मक उपाया से विश्व सुरक्षा के स्वप्न 111 विरद्ध कदम न उठाता तो निश्चय ही नागरिक जीवन दुखद हो जाता। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र म आज भी हिमा गक्ति पर विश्वाम दिया जाता है। एसा लगता है अब तक कोई राष्ट्र या व्यक्ति व्यवस्थित व न्यायपूण माग पर चलना सीखे ही नहीं । अनियनित मानव की स्वभावजन्य प्रवृतियाँ अभी नष्ट नहीं हुई । अहिंसात्मक प्रयोग के लिए विश्व के सभी बड़े राप्दो ने मिलकर राप्ट सघ जसी व्यापक और महत्त्वपूर्ण सस्था का इसलिए निर्माण किया कि समस्त विवादा वो वार्तालाप द्वारा निपटाया जाए। किन्तु गस्त्री की प्रतिस्पधा कम नहीं हुई। यह सच है कि विश्वयुद्ध की ममाप्ति पर कतिपय मित्र राष्ट्रा ने सेना म रटौती थी। लेकिन इससे भी भयकर परमाणु शक्ति द्वारा निर्मित उमा का काय है । अन्तर्वीपीय प्रक्षेपणास्त्र भी उपक्षणीय नही । सिद्धान्तत नि शस्नीकरण उपयुक्त है। पर इसके प्रति यथाथवादी दष्टिकोण कहाँ अपनाया जाता है ? जब भी यह प्रश्न उठता है तव यह समस्या खड़ी हो जाती है कि प्रथम पहल कोन करे? क्या सामूहिक नि शस्त्रीकरण सम्भव नहीं है? सच बात तो यह है कि जब तक किसी भी राष्ट्र या उसके नेताओं के हृदय म करुणा की भावना का उदय नहीं होता तब तक मस्तिष्क पटल की योजनाएँ न साकार हो सकती है और न राष्ट्रा म पारस्परिक दृढ विश्वास ही उत्पन्न कर सकती है। सभ्यता का विकास अस्लो द्वारा हुनाहो-ऐसा कोई उदाहरण विश्व इतिहास म उपलब्ध नहीं है । विकराल महार शक्ति बलात मानव को क्सिी भी क्षेत्र म गतिमान नहीं कर सकती । भारत का ही मध्यकालिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि ासका द्वारा घोर अाक्रमण और अमानुपिक अत्याचारा के वावजूद भी यहां की जनता को किसी विशेष सम्प्रदाय म वे परिवर्तित न कर सके । सभ्यता का प्रावरण क्सिी सीमा तक प्रभावोत्पादक बन सकता है, पर उसका नाश्वत और स्थायी प्रभाव तो तभी पड़ता है जब उसकी आत्मा पूणतया मस्कृतिनिष्ठ हो । सस्कृति यात्मा है तो मभ्यता उसका शरीर । सभ्यता परिवत्तनशील है जब कि सस्कृति परिवतनशील दीखते हुए भी मौलिक दप्टि में अपरिवर्तित ही है। वाह्य परिवतन मम्भर है, पर उसकी प्रात्मा तथ्य के सनातन सत्या से ओतप्रोत है।
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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