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________________ भारतीय संस्कृति के संरक्षक वे प्राचीन भारत के अधिकांश धर्माचार्यों से महमत है कि इच्छा ही सारे दुखों की जा है। वे उनकी हग राय से भी सहमत हैं कि जब इच्छा पा प्रभाव नष्ट हो जाता है, तभी हम सर्वोच्च शान्ति पौर मानन्द की प्राप्ति कर सरते है। लकसा के गात कालेज में एक माध्वी ने मस्तृत में भाषण दिया पा पौर हमे पता चला कि प्राचापं श्री माधु-साध्वियों को शिक्षा देने में अपना पापी ममय सचंपरने है । ये ममतप्राण्ड विद्वान, भोजस्वी यादा और गम्भीर चिन्तक हैं। पपने विचारों में प्रमगामी उत्साह और पसीम श्रा साप देगा बोने से दूसरे बोने तक अपना नंतिक पुतरस्पान का सन्देश बहन वाम मा पार पनी यह होना है। इस दिन वार्य में हम पर भारत प्रेमी में हदय से महमानी बनने की प्रार्थना परते हैं। उत्थान के ऐगेरिनर प्रयाग मे ही रविको और शानियों की महान भारत की यह पल्पना गरार हो गरेगी। भारतीय संस्कृति हम सरकमा सभी मभिमदन पर है। रासस्थान पा यह मात दीपंत्रीयो हो और अपने पावन प्पेय रोमिटरे।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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