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________________ २६ : युगे-युगे सस्कृति और युग I नये संसार मे भारत, अपने स्वभाव और अपनी संस्कृति के अनुसार, राष्ट स्थान प्राप्त करने के लिए यत्न कर रहा है। पत्र भारत ने राजवातुभ्य प्राप्त कर लिया है । परन्तु स्वातन्त्र्य एक उपाय मात्र है । रा एक बड़े लक्ष्य को सिद्ध करना है तथा इस प्राचीन देश को नवीन है । यह एक बहुत बड़ा काम है और इसमें हर व्यक्ति का सहयोग है । इस देश की पुरानी सभ्यता और संस्कृति को इस नये युग के बनाना है । जीवन के हरएक विभाग में शामूल परिवर्तन लाना है । प्रारम्भ हो गया है। केन्द्रीय सरकार की जो पचवर्षीय योजनाएं चल उनका मुख्य उद्देश्य यही है। उनमे यद्यपि प्रार्थिक सुधार पर अधिक या जा रहा है, फिर भी अधिकारियो को इस बात का पूरा ज्ञान है कि प्रायिक उन्नति से, केवल दारिद्र्य-निवारण से, देश की उन्नति नहीं हो है । साथ-साथ अनेक सामाजिक सुधार भी आवश्यक हैं। शिक्षा क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है । इस युग मे यह लज्जा और परिभव की बात यपि इस देश में अच्छे प्रच्छे विद्वान् भी मिलते हैं । परन्तु इस युग में ' की कसौटी ही दूसरी है । केवल बीस प्रतिशत आदमी ही पेट भर खा और सब भूखे रह जायें तो यह देश की समृद्धि नहीं कही जा सकती है । मच्छे विद्वान् भले ही मिलते हो, परन्तु अधिकाश जनता यदि निरक्षर है उन्नति की नहीं समझी जा सकती है । इतनी विद्वत्ता तो व्ययं गई, उसका साधारण जनता पर कोई असर ही नहीं हुआ। इस युग में रा जनता की उन्नति ही उन्नति समझी जाती है । इस दृष्टि से भी मे बहुत काम बाकी है। काम इतना बडा और सर्वतोमुख है कि सारी जनता यदि बड़ी तत्परता एकता के साथ निरन्तर प्रयत्न करें, तब कार्य सिद्धि को सम्भावना है, नहीं लकुल नहीं है । कुछ इने-गिने व्यक्तियो के इस काम में भाग लेने से लक्ष्य नहीं हो सकता है । सारी जनता का सहयोग अपेक्षित है। बड़ा ऐकमत्य और उत्साह हो । चीन के सम्बन्ध में भारत में तरह-तरह की भावनाएं है । की राजनैतिक भौर पार्थिक व्यवस्था के बारे में भी यहाँ काफी मतभेद है । भारतीय चीन हो माये हैं और उन्होंने अपने-अपने अनुभवों का वर्णन भी
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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