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________________ to ter Ktr a tara afthatalimfst tirlift Ek Priram Rait frectririt.fretratimatur | TTET REr time trerani rat at Prem liferatो atta armirat marane. f -लोन मागम को को माना । ! अन्न हिगाना, पET, न मानता औन नहीं है। नही मनुष्योति मनमरण कारा| मन हर भी मनाली पारितों को पी गोम पाप गरमा: काहन सपनो ग माग का हाति समर्पन ना पाहिला उममे थानिक सौगनास उसान होगा, परदर गी पौर गामायना और प्रेन का प्रसार होगा। समन्ययमूलक पादांगाद पापायंग्री तुलसी मणुमत-मादोजन में भी महान है । निरगन्दे यह उनकी महान देन है, किन्तु यही सब कुछ नहीं है। उनकी प्रतिमा विविध है पौर उनकी दृष्टि सर्वव्यापी है। उनका समन्वयमूलक मारवाद उनकी सभा प्रवृत्तियों मे नये प्राण फूंक देता है। ऐमी प्रफुल्लता सा देता है जो बुद्धिगम्य . प्रतीत नहीं होती। मगर दुर्गणों का सोप हो जाता है तो संस्कृति का मागमन अवश्यम्भावी है। जब दुर्गुण, बुराई और पतन नामोप हो जाये तो संस्कृत का अपने पाप विकास होता है।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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